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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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दिलण्यति संस्कृत सपा का रूप है। इसका प्रासोर भाषा रूप जबपास होता है। इसमें सूत्र संख्या २ १७४ से मूल संस्कृत रूप 'लिब्' के स्थान पर प्रा-तोष भाषा में रूद्र रूप 'अवयास' का निपात ४-२३९ से प्राप्त रूप अवयास' में संस्कृत गण वाचत 'य' विकरण प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'अ' वितरण प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३९ वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्र प्राप्ति होकर 'रूढ अर्थ वाचक रूप जययासह सिद्ध हो जाता है।
उत्पाटयति अथ कथयति संस्कृत मे किया का क है इसका प्रान्तीय भाषा रूपम्फुलाई होता है। इसमें सूत्र संख्या २ १७४ से मूल संस्कृत रूप 'उत्पाद' अथवा 'क' के स्थान पर प्रान्तीय भाषा में एक रूप 'फुम्फुल्ल का निशत ४-२३ संस्कृतगण वाचक 'जय' विकरण प्रत्यय के स्थान पर वर्तमानकाल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृतप्र
प्रस्कृत में 'अ' विकरण प्रत्यय की प्राप्ति और ३१३९
'लि' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'रूढ अर्थ' वाचक रूप फुम्फुल्लड़ सिद्ध हो जाता है।
उत्पाटयति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद का रूप है।
प्रान्तंय भाषा उफा होता है। इसमे
संत रूप 'उत्पाद के स्थान पर प्रान्तीय
सूत्र संख्या २१०४ ये भाषा में रूद्र रूप उत्पाद का निवाल ४-२३९ से प्राप्त रूढ़ रूप उकाल' में संस्कृत गण-वाचक 'अय' विकरण प्रत्यय के स्थान पर देश प्राकृत में 'अ' विकरण प्रत्यय की प्राप्तिः ३.१५८ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर '' की शाप्ति और ३-१३९ वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रश्यम लि' के स्थान पर प्राकृत में '' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'रूद्र-अर्थ' वाचक रूप उप्फालेह सिद्ध हो जाता है ।
मन्डरसट परिवृष्टम स्कुल विशेषणात्मक वाक्यांश है इसका प्राकृत रूप मन्वर-परिषद्ध होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'त्' का लोपः १-१८० से सीप हुए 'त्' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति १-१९५ से प्रथम 'ट' के स्थान पर 'ड' को प्राप्ति १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २३४ सेके स्थान पर '४' को प्राप्ति २-८९ से प्राप्त '७' को दिव्य 'ठ' को प्राप्ति २.९० से प्राप्त पूर्व 'कू' के स्थान पर 'है' की प्राप्तिः ३०५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'में' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' कर अनुस्वार होकर मन्दर पद-परिषसिद्ध हो आता है।
दिवस- निष्टाः संस्कृत विशेषणात्मक वाक्यांश है इसका प्राकृत
निर्णय होता
इस सूत्र संख्या १-१७७ से व् का लोपः १-२२६ से' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति १-१८० से प्राप्त 'प' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति २-३४ सेके स्थान पर 'द' की प्राप्ति २-८९ से '' की द्विस्य की प्राप्ति
और २.९० से प्राप्त पूर्व के स्थान पर 'टू की प्राप्ति २-२२८ द्वितीय स्थान पर ' की प्राप्ति १-१० से अनुस्वार के स्थान पर आगे थीय 'ग' होने से पंचमाक्षर रूप ' की प्राप्ति और १-२ से प्रथम मिति के एक वचनं में अकारान्त पुलिस में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तदित निहाएंगी रूप सिद्ध होता है।