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*प्राकृत व्याकरण *
अर्थ:-'' यह अव्यय प्राकृत-साहित्य का है। इसका प्रयोग करने पर प्रसंगानुसार तीन प्रकार की वृत्तियों में से किसी एक वत्ति का ज्ञान होता है । सबनसार विश्वे ऐसा करने पर प्रसंगानुसार कभी "भय वृति का कभी निवारण करने लप वृत्ति का अथवा कभी 'जूरना-लेक प्रकट करना रू' वृत्ति का भान होता है। जवाहरण इस प्रकार है:
मूल:-ये ति भये देल्वे ति बारणे जूरणे व देव ति।
उल्लामिरी विपुहं श्वे ति मपविछ कि पे ॥१॥
संस्कृतः-वैव्ये इति भये वेध्ये इति निवारणे (खेचे विषाद व वेल्वे इति ।।
उल्लपनशीलया अपि तष वेसवे इति मुगाक्षि ! किम् जयं ।।१।।
अर्थ:-हे हिरण के समान सुन्दर नेत्रों वाली सुन्वरि ! तुम्हारे द्वारा जी देवे शब्द बोला गया है। वह (शम्ब) या भय अर्थ में बोला गया है ? अथवा 'निवारण अर्य' में बोला गया है ? अमवा सिन्नता' अर्थ में बोला गया है ? तवनुसार 'देवे' इसका क्या तात्पर्य समझना चाहिये ? अर्थात् क्या तुम भय-पस्त हो ? अथवा क्या तुम किसो मात विशेष को मनाई कर रही हो? अयवा क्या सुन खिन्नता प्रकट कर रही हो ? मैं तुम्हारे द्वारा सञ्चारित 'वेष्वे' का पया तात्पर्य समा? दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:मूल:-कि उल्लावेन्तीए उस पुरतोएं कि तु भीआए ॥
उग्वाहिरीएं बेवेत्ति तीऍ भणि न बिम्हरिभो ॥२॥ संस्कृत-कि उल्लापमस्या उत्त विध-त्या कि पुनः भीतया ।
उवातशीलया बेचे प्रति तया भणितं न विस्मरामः ॥२॥ अर्थ:-जस (स्त्री) द्वारा (गो) वेजे ऐसा कहा गया है। तो क्या 'उल्लाप-विलाप करती हुई द्वारा मायया क्या खिन्नता प्रकट करती हुई द्वारा अपवा पया भयभीत होतो द्वारा अथवा क्या वायु-विकार से उद्विग्न होती हई द्वारा ऐसा (बेध्ये) कहा गया ? (यह) हमें स्मरण नहीं होता है । अर्थात् हमें यह याद में नहीं आ रहा है कि-वह स्त्री क्या भय-मीत अवस्था में थी अथवा क्या खिन्नता प्रकट कर रही थी अपवा क्या विलाप कर रही थी अपवा पा रह वायु विकारसे उद्विग्न थी, कि जिससे वह 'वेव्वे' 'वेव्वे' ऐसा बोल रही थी।
उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'येथे' मव्यय का प्रयोग भप निवारण और द अर्थ में होता है।
घटय प्राकृति-भाषा का अध्यय है। रू-अर्थक और
कहोने से सावनिका किमावश्यकता नहीं।
तिरूप की सिद्धि सूत्र-संक्ष्या १-४
की गई
।
खेडे संस्कृत सप्तम्यंत रूप है। इसका प्राकृत रूप जूरणे होता है । इसमें पूत्र-संख्या ४-१३२ से 'विद्' के स्थान पर 'जर आदेश४-४४८ से संस्कृतवत् किया से संज्ञा-
मिओग-अप' 'अन' प्रत्ययकी प्राप्ति १-५ सेहलात