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सस्पतिमान ! * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
में स्थित 'स' के अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर होई स्वर 'मां' की प्राप्ति होकर सुपुरिता म सिद्ध हो जाता है।
एष संस्कृत अव्यय है। इसका प्राकृत रूप च होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१८४ से 'एवरे स्थान पर 'पच' आदेश की प्राप्ति होकर'च्च' रुप सिबो जाता है।
'स': संस्कृत सर्वमाम रूप है। इसका प्राकृत रूप से होता है इस पत्र संख्या ३-८६ से मूब सर्वनाम 'तत्' के स्थान पर 'सो' आवेश और २-३ से 'पकल्पिक है। . 'ओ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति होकर 'ससिद्ध हो जाता है।
'च' संस्कृत संबंध-वाचक अग्यप रूप हं । इसका प्राकृत रुप होता है। इसमे पूत्र संख्या १-२७५ से '' का लोप और १-१८० से लोप हुए 'म्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'ब' को प्राप्ति होकर 'यप सिद्ध हो जाता है।
रूपेण संस्कृत तृतीयान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप स्वेण होता है । इसमें सूत्र संख्या १२५ से 'प' के स्थान पर 'a' की प्राप्ति: ३.६ से तृतीया विभक्ति के एक बचन में प्रकारात मसक लिंग में अपवा पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'प' के पूर्व में स्थित 'य' में रहे हुए '' के स्थान पर 'ए' की प्रापि होकर स्वेण म्प सिद्ध हो जाता है।
'स' और 'पंच' रूपों की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर कर रो गई है।
शीलेण संस्कृत तृतीयान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप सोलेग होता है । इसमें पूत्र संख्या:-२६.से '' स्थान पर पर 'स' की प्राप्ति; ३-६ से तृतीया विक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिग में अपना पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'या' के स्थान पर प्राकृत 'मा' प्रत्यय को प्राप्ति और ३-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'ल' में रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर सौलेण रूप सिद्ध हो जाता है। ॥ २-१४ ।।
बले निर्धारण-निश्चययोः ॥२.१८५॥ पले इति निधरणे निश्चये च प्रयोक्तव्यम् ।। निर्धारणे । बले पुरिसोधणंजो खत्तिश्राणं ।। निश्चये । बले सीहो । सिंह एवायम् ॥
अर्थः-दृवृत्तपूर्वक कथन करने में और निश्चय-अयं बतलाने में प्राकृत साहित्य में 'बले' अव्यय नगर किया जाता है। जैसे:-'अन्ने' पुरुषः समंजयः मश्रिया - इले पुरिसोधण-मओ अतिप्राण अर्थात् मात्रियों में वास्तविक पुरुष मंजय ही है । सिंह एवायम् = बले सोहो अर्थात् यह सिंह ही है। कोई कोई 'निर्धारक काम का अर्थ ऐसा मी करते है कि समूह में से एक भाग को पृथक रूप से प्रदर्शित करना।
'बले' अध्यय रुतु-अर्थक होने से एवं -रुपक होने से सावनिका की बागायकता नहीं है। परिसीप सिद्धि त्रसंख्या १-२में की है।