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* प्राकृत व्याकरण में
सहस्त्र-कृत्य, संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सहस्सह होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-९ से 'र' का लोप; २-८८ से लोप हुए 'र' के पश्चात शेष रहे हुए. 'स' को द्वित्व 'स' का प्राप्ति; शेष साधनिका उपरोक्त सय हुत्ते के समान हा होकर सहस्सहुन रूप सिद्ध हो जाता है।
प्रियाभिमुखम संस्कृत रूप है । इमका प्राकृत रूप पियहुरी होता है। इसमें मूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप; १-८४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर की दि.१३ प्रति अभिमुख' के स्थान पर 'हुच' आदेश की प्रामि; ३.०५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पिय ने रूप सिद्ध हो जाता है ।।२-१५८।।
आल्पिल्लोल्लाल-वन्त-मन्तेत्तेर-मणामतोः ॥२-१५६।।
आलु इत्यादयो नव श्रादेशा मतोः स्थाने यथाप्रयोगं भवन्ति ।। आलु । नहालू । दयाल । ईसाल । लज्जालुा ।। इल्ल । सोहिल्लो । छाइल्लो । जामइल्लो । उल्ल | विश्रारुल्लो । मंसुल्लो । दपपुल्लो ॥ पाल । सद्दाली । जडालो। फडालो । रसालो ! जारहाला ।। पन्त । घणवन्ती । भात्तिवन्तो ॥ मन्त । हगुमन्तो। सिरिमन्तो । पुराणमन्ती ॥ इत्त कबइतो । माणइत्तो ।। हर । गम्विरो । रहिरो ॥ भए । घणमणो ॥ कंचिन्मादेशमपीच्छन्ति । हणुमा । मतोरिति किम् । धणी । अस्थिओं ॥.
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अर्थ:-'वाला-अर्थक' संस्कृत प्रत्यय 'मन' और 'वत्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में नव आदेश होते हैं जो कि क्रम से इस प्रकार है:-आलु, इल्ल, उल्ल, पाल, बन्त, मन्त, इत्त, इर और मग । आलु से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार है:-स्नेहमान = नेहालू । दयावान् = दयाल । ईावान = ईसालू। लज्जावत्या = लज्जालुवा ।। इल्ल से सम्बंधित उदाहरण:-शीमावान-मोहिल्ली । छायावान छाइल्ला । यामबान = जामइल्लो । उल्ल से सम्बंधित उदाहरणः विकारवान - विआरुल्लो । श्मश्रृंवान् -मंसुल्लो । दर्पवान = दप्मुल्लो || आल से संबंधित उदाहरण :-शब्दवान् = सद्दालो । जटावान - जडालो। फटावान् = फडाला । रसचान = रसालो। ज्योत्स्नावान् = जोरहालो । पन्त से सम्बंधित उदाहरण:-धनवान धणवन्तो। भक्तिमान् = भत्तिवन्ती । मन्त से संबंधित उदाहरणः-हनुमान् हनु. मन्तों । श्रीमान् =सिरिमन्ती । पुण्यवान = पुण्णमन्तों। इत्त से सम्बंधित उदाहरणः-काव्यवान = कम्बइत्तो । मानधान-माणइत्तो ॥ इर से संबंधित उदाहरण:-गवेवान् = गम्विरो । रेखावान् - रेहिंगे । मण से संबंधित उदाहरणः-धनवान = धणमणो इत्यादि । कोई कोई प्राचार्य मत्' और 'बन्' के स्थान पर 'मा' आदेश की प्राप्ति का भी उल्लेख करते हैं; जैसे:-हनुमान् =हणुमा ।।
प्रश्नः-वाला-अर्थक' मत् और वत् का ही उल्लेख क्यों किया गया है ?
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