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* प्राकृत व्याकरण *
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एतापत संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप इत्ति होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१५६ से 'एतावत्' का लोप और 'इत्तिन' आदेश की प्राप्ति और शेष साधनिका उपरोक्त 'जिशिअं' रूप के समान ही होकर इन्तिम रूप सिद्ध हो जाता है ।।२-१५६||
इदकिमश्च डेत्तिब-डेत्तिल-डेदहाः ॥२-१५७॥ इदं कि म्यां यत्तदेतद्धयश्च परस्यातो डवितो डित एत्तिा एत्तिल एदह इत्यादेशा भवन्ति एतल्लुक च ।। इयत् । एत्तिअं । एतिल । एदहं ॥ कियत् । केत्तियं । केत्तिलं । केदह ॥ यावत् । जेत्तिनं । जेत्तिलं । जेहहं ॥ तावत् । तेत्तिअं । तेत्तिलं । तेहहं ॥ एतावत् । एत्तिअं| एचिलं । एदहं ॥
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्', 'किम्', 'यत्त', 'तत्', और 'एतत्' में संलग्न परिमाण वाचक प्रत्यय 'अतु-अत्' अथवा 'डावतु (ड' की इत्संज्ञा होकर शेष) श्रावतु श्रायत्' के स्थान पर प्राकृत में 'एत्तित्र' अथवा 'एत्तिल' अथवा एड्ह श्रादेश होते हैं । 'एतत्' से निर्मित 'एतावत' का लोप होकर इसके स्थान पर केवल पत्ति' अथवा 'एत्तिल' अथवा एहई रूपों को आदेश रूप से प्राप्ति होती है । उपरोक्त सर्वनामों के उदाहरण इस प्रकार हैं:-नयत = मिश्रपतिलले अथवा एहं । कियत = केत्ति, केत्तिल और केदहं । यावत् =जेत्तिअं, जेतिल और जेहं । तावत् = तेतिनं, तेतिल और तेहह । एतावत - एतिश्र, एत्तिलं और पदहं ।
इयत् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप एतिश्र, एप्तिल और एदह होते हैं । इनमें सूत्रसंख्या २-१५७ की वृत्ति से 'इय' का लोप; २-१५७ से शेष 'श्रत्' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'एत्तिश्र, एत्तिल और एदह' प्रत्ययों की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विमक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से एत्ति, एतिलं और एइहं रूपों की सिद्धि हो जाती है।
कियत् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप केत्तिश्र, केत्तिल और केहहं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-१५७ की वृत्ति से 'इय्' का लोप; २-१५७ से शेष 'अत्' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'एत्तिश्र, एशिल और एदह' प्रत्ययों की प्राप्ति; १-५ से शेष 'फ' के साथ प्राप्त प्रत्ययों की संधि; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से केत्तिों , कात्तिलं और केदह रूपों की सिद्धि हो जाती है।
___ यावत् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूपजेशि, जेत्तिल और जेदहं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२४५ से 'यू' के स्थान पर 'ज' की प्राप्तिः २-१५७ से संस्कृत प्रत्यय 'पावत्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से एवं वैकल्पिक रूप एशिष, पत्तिल और एहह प्रत्ययों की प्राप्ति; १-५ से प्राप्त 'ज' के साथ