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* प्राकृत व्याकरण *
विष्णु संस्कृत रूप है । इसका वेशज प्राकृत रूा भट्टिो होता है । इसने सत्र संख्या २.१७४ सं संपूर्ण संस्कृत शब्द 'विष्णु के स्थान पर देशज प्राकृत में 'भट्टिम रूम का निपात और ३.२ से पथमा विभक्ति के एक बचन में सकारात पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर भट्टिओ रूप सिद्ध हो जाता है।
इमशानम् संस्कृत रूप है । इसका येशज प्राकृत रूप करसी होता है। इसमें सूत्र-संख्या -19४ से मंपूर्ण संस्कृत शब्द 'मशानम्' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'करसी' रूप का निपात होकर करसी रूप सिद्ध हो जाता है ।
असर: संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप अगया होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७४ से सम्पूर्ण संस्कृत शम्च 'असुराः' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'गया' रूप का निपाप्त होकर गया का सिद्ध हो जाता है।
खेलम् संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप शेड होता है । इसमें सूत्र संख्या २-२५४ से 'ल' वर्ण के स्थान पर देशज प्राकृत में द्वित्व 'ई' का नित, ३-२५ से श्यमा विभक्ति के एक वचन में सकारात नपुस साला में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर खेदडं रूप सिद्ध हो जाता है।
पीध्य-रजः ( पुष्प-रमः ) संस्कृत रूप है। इसका वैशन प्राकृत रुप तिपिछ होता है। इसमें सूत्रसंख्या २-१७४ से सम्पूर्ण संस्कृत शव पौर्ण-रज' के स्थान पर देशम प्राकृत में सिङ्गिविक रूप का निपात होकर तिमिछि रूप सिद्ध हो जाता है।
दिनम् संस्कृत रूप है । इसका देशज प्राकृत रूप अल्लं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द :दिन' के स्थान पर देशा प्राकृत में 'अल्ल' रुप का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति में एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सिप्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' प्रल्पय का अमुस्वार होकर अल्ल रूप सिद्ध हो जाता है।
समर्थः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप पालो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७४ से संपूर्ण 'एक्कल' रूप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पक्कली रूप सिद्ध हो जाता है।
पण्डकः संस्कृत रूप है । इसका वेशज प्राकृत रूप णेलच्छो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २.१७४ से संपूर्ण संस्कृत शम्ब 'पण्डक' के स्थान पर देशम प्राकृत में 'लन्छ' रूप का निपात और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वमन में सकारान्त पहिलग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर णेलच्छो रूप सिद्ध हो
कर्यासः संस्कृत स्प है। इसका देशज प्राकृत रूप पलही होता है। इसमे सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शम 'कस' के स्थान पर देशज प्रस्तृत में 'पलही रूप का निपात और ३-१ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में वीर्ष ईकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर दोघं 'ई' को यया रुप दीर्घ 'ई' को स्थिति प्राप्त होकर