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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
होकर सिद्ध हो जाता है
घायणो
सूत्र
गायन: संत रूप है। इसका देश प्राकृत रूप होता है। इसमें संख्या २-१७४ सेके के स्थान पर च' की प्राप्ति २-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की और वन में अकारांत पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर
३-२
प्रथमा विभक्ति के एक पण रूप सिद्ध हो जाता है।
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षडः संस्कृत कय है। इसका देशज प्राकृत रूप बडो होता है। इसमें सूत्र संख्या २१७४ से 'ब' के स्थान पर ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वढो रूप सिद्ध हो जाता हूँ ।
ककुदम संस्कृत रूप है। इसका बैशज प्राकृत रूप ककुधं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से '' के स्थान पर 'घ' की प्राप्ति २-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकाल नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के धान परम् प्रत्यय की प्राप्ति और १२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कुरूप सिद्ध हो जाता है।
प्राकृत रूप अत्थकं होता है। इसमें संख्या २-१७४ '१-२५ प्रथमा विभक्ति के
अकाण्डम् संस्कृत रूप है इसका संपूर्ण संस्कृत शब्द 'अकाण्ड' के स्थान पर बेश एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ सेप्तम्' का अनुस्वार होकर अत्थकं रूप सिद्ध हो जाता है।
लज्जावती संस्कृत विशेषण रूप है। इसका देश २-१७४ से वाली' अर्थक संस्कृत प्रत्यय 'वती' के स्थान पर लज्जालुणी रूप सिद्ध हो जाता है।
प्राकृत रूप लज्जालु होता है। इसमें सूत्र संख्या प्राकृत में मुहणी प्रत्यय का निपात होकर
कुतूहलम् संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप कुछ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत रूप 'कुतूहल' के स्थान पर वेशज प्राकृत में 'कुछ' रूप का निपातः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर कुछ रूप सिद्ध हो जाता है।
चूतः संस्कृत रूप (मानवाचक ) है इसका देशज प्राकृत रूप मायबो होता है | इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण 'सायद' रूप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभति के एक वचन में अकारान्त पुलिस में 'सि' प्रस्थय के स्थान पर 'ओ' प्रथम को प्राप्ति होकर मायन्ती रूप सिद्ध हो जाता है।
माकन्दः संस्कृत रूप है। इसका देशन प्राकृत रूप मामम्बी होता है। इसमें सूत्र खोप ११८० सोप हुए के पश्चात् रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'जो' प्रत्यय की प्राप्ति सिद्ध हो जाता है।
संख्या १-१७७ से
और ३-२ से प्रथमा होकर मायन्तो रूप