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* प्राकृत व्याकरण *
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'ब' को द्वित्व 'व' की प्राप्ति और २-१६० संस्कृत प्रत्यय 'तः' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'तो और 'दो' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम से सत्वत्तो और सबको यो प्रथम दो रूपों की सिद्धि हो जाती है।
तृतीय रूप सवओं की सिद्धि सूत्र-संख्या १.३७ में की गई है।
एकतः संस्कृत अव्यय रूप है । इसके प्राकृत रूप एकत्तो और एकदो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-१६० से संस्कृत प्रत्यय 'त:' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'तो' और 'दो' श्रादेशों की प्राप्ति होकर क्रम से एफसो और एकदो यो दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है।
अन्यतः संस्कृत अव्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप अग्नत्तो और अन्नदो होते हैं। इनमें सूत्रसंख्या-0-45 से 'य' का लोप: २.८६ से लोप हुए 'य' के पश्चात् शेष रहे हए. 'न' को द्वित्व 'न' को प्रामि २-१६० से संस्कृत प्रत्यय 'तः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'तो' और 'दो' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम से अनतो भार अन्नड़ी यों दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है ।
कुतः संस्कृत अन्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप कत्तो और कदो होते हैं। इनमें सुत्र-संख्या ३-७१ से 'कु' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति; और २-१६० से संस्कृत प्रत्यय 'त:' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'तो' और 'दो' श्रादेशों की माधि होकर कम से कसो यो दोनो भलों की सिद्धि हो जाती है।
यतः संस्कृत अव्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप जसो और जदो होते है। इनमें सूत्र-संख्या १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति और २-१६० से संस्कत प्रत्यय तः के स्थान पर प्राकृत में कम से 'तो' और दो आदेशों की प्राप्ति होकर कम से जत्ती और जनो यों दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है ।
ततः संस्कृत अध्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप तत्तो और तदो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २.१६८ से संस्कृत प्रत्यय तः के स्थान पर प्राकृत में कम से 'तो' और 'दो' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम में तको और तदो यों दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है।
इत्तः संस्कृत अव्यय रूप है । इसके प्राकृत रूप इत्तो और इदो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या २-१६० से संस्कृत प्रत्यय 'तः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'तो' और 'दो' आदेशों की प्राप्ति होकर कम से इत्तो और इलो यों दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है । ॥२-१६०।।
त्रपो हि-ह-स्थाः ॥२-१६१॥ वप् प्रत्ययस्य एते भवन्ति ॥ यत्र । जहि । जह । जत्थ । तत्र । तहि | तह । तत्थ ।। कुत्र । कहि । कह । कत्थ । अन्यत्र । अन्नहि । अन्नह । अन्नत्थ ।।
अर्थ:-संस्कृत में स्थान वाचक 'त्र' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'हि', 'ह' और 'त्य' यों तीन आदेश कम से होते हैं। उदाहरण इस प्रकार है:-यत्र-जहि अथवा जह अथवा जत्थ ।। तत्र-तहि अथवा