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* प्राकृत व्याकरण *
पर 'ग' की प्रामि, -५७७ से 'द् का लोप और १-१८० से लोप हुए 'द' के पश्चात शेष रहे हुए 'आ' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति होकर एनया रूप मिद्ध हो जाता है ।।:-६६६।।
डिल्ल डुल्लो भवे ॥२.१६३॥ भवेर्थे नाम्नः परौ न उल्ल इत्येता डिनो प्रत्ययो भवतः ॥ गामिल्लिया । पुरिन्लं । हेडिल्लं । उवरिल्लं । अप्पुल्लं ।। पाल्यालायपीच्छन्त्यन्ये ||
अर्थः-भव अर्थ में अर्थात् 'श्रमुक में विद्यमान' इस अर्थ में प्राकृत-मचा-शब्द में इलल' और 'उल्ल' प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:-मामे भवान्प्रामेयका-मिल्लिया पुराभवं-पुरिल्लं; अधो-भवं = अधस्तनम् = हे ट्रिग्लं; उपरि भवं = उपरितनम् = उवरिल्ल और आत्मनि-मय = श्रात्मीयम् = अप्पुल्लं । कोइ कोई व्याकरणाचार्य 'अमुक में विद्यमान' अर्थ में 'धालु' और 'पाल' प्रत्यय भी मानते हैं।
ग्रामयका संस्कृत विशेषण्ण रूप है । इसका प्राकृत रूप गामिल्लिा होता है। इसमें सूत्रसंख्या २-७६ से 'र' का लोप; २-१६३ से संस्कृत 'तत्र-भव' वाचक प्रत्यय 'इय' के स्थान पर प्राकृत में 'इल्ल' की प्राप्ति; ३-३१ से प्राप्त पुल्लिंग रूप 'गामिल्ल' में स्त्रीलिंग 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति; १.१० से 'ल्ल' में स्थित 'अ' स्वर का आगे 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति होने से लोप; १-८५ से प्राप्त दीर्घ स्वर 'ई के स्थान पर हम्ब स्वर 'इ' की प्राप्ति और १-७७ से 'क' का लोप होकर गाम्मिल्लिा रूप सिद्ध हो जाता है।
पुराभवम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप पुरिल्लं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१६३ से संस्कृत 'तत्र-भव' वाचक प्रत्यय 'भव' के स्थान पर प्राकृत में 'इल्ल' की प्राप्ति; १-६० से 'रा' में स्थित श्रा' स्वर का आगे 'इल्ल प्रत्यय को 'इ होने से लोप; १-५ से हलन्त व्यञ्जन 'र.' में 'इल्त के 'इ की मंधिः ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'अकारान्त नपुंसक लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पुरिल्ल रूप सिद्ध हो जाता है।
अधस्तनम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप हेडिल्लं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१४५ से 'अघस' के स्थान पर 'हे?' श्रादेशः -१६३ से संस्कृत 'तत्र-भव' वाचक प्रत्यय 'तन' के स्थान पर 'इल्ल' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१० से 'ट्ठ' में स्थित 'अ' स्वर का आगे 'इल्ल' प्रत्यय की 'इ' होने से लोप; १-५ से हलन्त व्यञ्जन '8 में 'इल्ल' के 'इ' की संधि; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर हेटिल्ल रूप सिद्ध हो जाता है।