________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[४५६
तह अथवा तत्थ ।। कुन = कहि अथवा कह अथवा काय और अन्यत्र = अन्नहि अथवा अन्नह अथवा अन्नस्थ ।।
यत्र संस्कृत अव्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप जहि, जह और जत्य होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' को प्राप्ति और २-१६१ से 'त्र प्रत्यय के स्थान पर क्रम में प्राकृत में 'हि', 'ह' और 'त्य' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों रूप जहि. जह और जत्थ सिद्ध हो जाते हैं।
तत्र संस्कृत अव्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप तहि, तह और नत्य होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २.१६१ से 'ब' प्रत्यय के स्थान पर क्रम से प्राकृत 'हि', 'ह' और 'स्थ' आदेशों की प्राप्ति होकर कम से तीनों रूप तह, सह और तत्थ सिद्ध हो जाते हैं।
कुत्र संस्कृत अव्यय रूप है । इसके प्राकृत रूप कहि, कह और कत्थ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१ से 'कु' के स्थान पर 'क' की प्रानि और २-२६१ से 'त्र' प्रत्यय के स्थान पर क्रम से प्राकृत में "हि' 'ह' और 'त्थ' आदेशों की प्राप्ति होकर कम से तीनों रूप कहि, कह और कत्थ सिद्ध हो जाते हैं।
अन्यत्र संस्कृत अन्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप अन्नहि, अन्नह और अन्नस्थ होते हैं । इनमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य' का लोप; २-८८ से लोप हुए 'य' के पश्चात् शेष रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न' की प्राप्ति और २-१६१ से 'त्र' प्रत्यय के स्थान पर क्रम से प्राकृत में 'हि', 'ह' और 'स्थ' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों रूप अन्नाह, अन्नह और अन्नस्थ सिद्ध हो जाते हैं ।।२-१६१||
वैकाहः सि सि अं इबा ॥२-१६२।। एक शब्दात् परस्य दा प्रत्ययस्य सि सि इा इत्यादेशा वा भवन्ति ॥ एकदा । एक्कसि । एक्कासि । एक्कहा | पक्षे । एगया ।।
अर्थ:--संस्कृत शब्द 'एक' के पश्चात् रहे हुए 'दा' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से 'सि' अथवा सिधे अथवा 'इया' आदेशों की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे-एकदाएक्कसि अथवा पक्कसिध अथवा एक्कइया । वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में गया भी होता है ।
एकदा संस्कृत अध्यय रूप है । इसके प्राकृत रूप एकदा, विकसि, एकमिअं. एक कथा और एगया होते हैं। इनमें से प्रथम रूप 'एकदा' संस्कृत रू.पवत होने से इसका सानिका की आवश्यकता नहीं है । अन्य द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ रूपों में सूत्र-संख्या २. से 'क' के स्थान पर द्वित्व 'क' की प्रामि और २-१६२ से संस्कृत प्रत्यय 'दा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से एवं वैकल्पिक १ से 'सि', 'सि' और 'इश्रा' आदेशों की प्राप्ति होकर क्रम से एक्कसि, एकातिरं और एकहा रूप सिद्ध हो जाते हैं।
पंचम रूप-(एकदा=) एगया में सूत्र संख्या १-१७७ की वृत्ति से अथवा ४-३६६ से 'क' के स्थान