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2 प्राकृत व्याकरण *
उदाहरण इस प्रकार है:-ममपितृकामह-पिउल्लओ, मुख (क) म् = मुहल्लं; हस्ताः = (हस्तका:)हत्थुल्ला इत्यादि । पक्षान्तर में चन्दो, गयणं, इह, अाले बहु, बहुअं. मुई और हत्था रूपों की प्राप्ति भी होनी है। कुन्स. अल्पज्ञान श्रादि अर्थ में प्राप्त होने वाला 'क'संस्कृत-व्याकरण केसमा पान ही होता है। ऐसे विशेष अर्थ में 'क' की सिद्धि संस्कृत के समान ही जानना । 'थावादिलक्षण' रूप से प्राप्त होने काला 'क' सूत्रानुसार ही प्राप्त होता है और उसका उद्देश्य भो उसी तात्पर्य को बतलाने वाला होता है।
कुखुममिकामा विशेगम है। त रूप कुक्क म पिञ्जरय होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१६४ से 'स्वार्थ' में 'क' प्रत्यय की प्राप्ति; ६-१७७ से प्राप्त 'क' का लोप; १-१८० में लोप हुग 'क' के पश्चात शेप रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कुङ्गकुमपिजरयं रूप सिद्ध होता है।
गगने (= गगनके) संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप गयणयम्मि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से द्वितीय 'ग' का लोप; १-१८० से लोप हुए द्वितीय ग्' के पत्रात शेष रह हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; २.१६४ से 'स्व-अर्थ में 'क' प्रत्यय की प्रापि; १-१७७ से प्राप्त 'क' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'क' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में संस्कत प्रत्यय 'ए के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि प्रत्यय की प्राप्ति होकर गयणयम्मि रूप सिद्ध हो जाता है।
धरणी धर-पक्षांदभातम संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप धरणो हर-पक्खुम्भन्तयं होता है । इसमें सूत्र-संख्या ५-५८७ मे द्वितीय 'ध' के स्थान पर है' की प्रामिः २-३ से 'न' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २.८६ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'रनख' की प्राप्ति; २-० से प्राप्त पूर्व 'रन' के स्थान पर 'क.' की की प्राप्ति १-८४ से दीर्घ स्वर 'श्री' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति एवं १-५ से हलन्त 'ख' के साथ सम्मिलित होकर 'खु' की प्राप्ति; २-७७ से हलन्त व्यञ्जन 'द' का लोप; २-८८ से लोप हुा. 'द' के पश्चात शप रहे हुए 'भ' को द्वित्व भभु' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'भ' के स्थान पर 'ब' की प्राप्ति; १.८४ से 'भा' में स्थित दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-२६ से 'भ' पर पागम रूप अनु. स्वार की प्राप्ति: १-३० से प्राप्त अनुस्वार के स्थान पर आगे 'त' वर्ण होने से 'त' वर्ग के पंचमाक्षर रूप 'न' की प्राप्ति; २-१६४ से 'स्व-अर्थ' में 'क' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१७४ से 'क' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'क' के पश्चात् शेष रहे हुए 'भ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुमक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर धरणी हर-पकरबुडभन्तयं रूप सिद्ध हो जाता है।
दुःखिते (= दुःखित्तके) संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप दुहिए होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' आदेश; १-१७७ से 'तू' का लोप; २-१६४ से 'स्व-अर्थ' में