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* प्राकृत व्याकरण *
प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-५३ से 'प' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'फ' को द्वित्व 'फफ' की प्राप्ति; २१० से प्रान पूर्व 'क' के स्थान पर 'प' की प्राप्ति २-१५४ से 'स्व' के स्थान पर 'इमा' प्रादेश १-१० से 'फ' में रहे हुए 'अ' का श्रागे 'इ' रहने से लोपः १.५ से 'फ' की श्रागे रही हुई 'इ' के साथ संधि; और १-११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन म्' का लोप होकर प्रथम रूप पुल्फिमा सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(पुष्पत्वम्) पुष्फत में 'पुष्फ' तक प्रथम रूप के समान ही सानिका; २-१५४ मे 'त्र' के स्थान पर 'तणं' आदेश; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप पुप्फत्तर्ण सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप-(घुष्पत्वम्-) पुष्फत में 'पुष्फ' तक प्रथम रूप के समान ही साधनिका;२.७६ से 'व' को लोप; २-८६ से शेष त' को द्वित्व 'त' की प्राप्नि; और शेष साधनिका द्वितीय रूप के समान ही होकर सृतीय रूप पुप्फत्तं सिद्ध हो जाता है।
पीनता संस्कृत विशेपण रूप है। इसका प्राकृत रूप पीण्या होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; १-१७७ से 'स' का लोप और १-१८० से शेष 'आ' को 'या' की प्राप्ति होकर पाणया रूप सिद्ध हो जाता है। पीणदा रूप देशज-भापा का है; अतः इसकी माधनिका की आवश्यकता नहीं है ।।२-१५४॥
अनकोठात लस्य डेल्लः ॥२-१५५।। अङ्कोट वर्जिताच्छब्दात्परस्य तेल प्रत्ययस्य डेल्ल इत्यादेशो भवति ।। सुरहि-जलेण कडुएल्लं ॥ अनङ्कोठादिति किम् । अकोल्ल तेन्लं ।।
अर्थ:-'अटोट' शठन को छोड़कर अन्य किसी संस्कृत शब्द में 'तैल' प्रत्यय लगा हुआ हो तो प्राकृत रूपान्तर में इस 'तैल' प्रत्यय के स्थान पर 'डेल्ल' अर्थात् 'एल्ल' श्रादेश हुश्रा करता है । जैसे:सुरभि-जलेन कटु-तैलम्-सुरहि-जलेण कडुएल्लं ।
प्रश्नः-'अकोठ' शब्द के साथ में 'तैल' प्रत्यय रहने पर इस 'तैल' प्रत्यय के स्थान पर 'एल्ल' श्रादेश क्यों नहीं होता है ?
उत्तर:-प्राकृत भाषा में परम्परागत रूप से 'अकोठ' शब्द के साथ 'सैल' प्रत्यय होने पर 'तैल के स्थान पर 'एल्ल' प्रादेश को प्रभाव पाया जाता है; अतः इस रूप को सूत्र-संख्या २-१५५ के विधान क्षेत्र से पृथक ही रखा गया है। उदाहरण इस प्रकार है:-अकोठ तैलम-अक्कोल्ल तेल्लं ।।
मुगम-जछेन संस्कृत तृतीयान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप सुरहि-जलेश होता है। इसमें सूत्र