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* प्राकृत व्याकरण *
सर्वाङ्गात् सर्वादेः पथ्यङ्ग [हे. ७-१] इत्यादिना विहितस्येनस्य स्थान इक इत्यादेशो भवति ॥ सर्वाङ्गीणः । सव्वाङ्गियो ।
अर्थ:-'सर्वादेः पश्यङ्ग' इस सूत्र से-( जो कि हेमचन्द्र संस्कृत व्याकरण के सातवें अध्याय का सूत्र है -'सर्वाङ्ग' शब्द में मार होने वाले संस्थान
प्राधानगर : कृत में 'इक' ऐसा थादेश होता है। जैसे:-सर्वाङ्गीण सव्यङ्गिनी ।।
___ सर्वागीणः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सबङ्गिो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६. से 'र' का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'व' को द्वित्व 'ब' की प्राप्ति; १.८४ से दीर्घ स्वर 'श्रा के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-१५१ से संस्कृत प्रत्यय 'ईन' के स्थान पर प्राकृत में 'इक्र' श्रादेश; १-१७४ से आदेश प्राप्त 'इक' में स्थित 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय प्राप्ति होकर सत्वर्गिओ रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-१५१।।
पथो पस्येकट् ॥२-१५२।। नित्य॑णः पन्थश्च (हे० ६-४) इति यः पथो सो विहितस्य इकट् भवति ॥ पान्थः । पहिलो ।।
अर्थ:-हेमचन्द्र व्याकरण के अध्याय संख्या छह के सूत्र-संख्या चार से संस्कृत शब्द 'पथ में नित्य 'ण' की प्राप्ति होती है; उस प्राप्त 'ग' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'इक' आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे-पान्थः पहिओ।।
पान्धः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पहिलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २.१५२ से 'न' के स्थान पर 'इफ' आदेश; १-१८७ से 'थ' के स्थान पर 'ह की प्राप्ति; १-१७७ से आदेश प्राप्त 'इक' के क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पहिओ रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-१५२!!
ईयस्यात्मनो णयः ॥२-१५३॥ श्रात्मनः परस्य ईयस्य णय इत्यादेशो भवति ।। आत्मीयम् अप्पणयं ।
अर्थ:-'आत्मा' शब्द में यदि 'ईय' प्रत्यय रहा हुआ हो तो प्राकृत रूपान्तर में इस 'ईय' प्रत्यय के स्थान पर ‘णय' आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे-आत्मीयम् - अप्पणयं ॥
आत्मीयम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अप्पणयं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-५१ से 'त्म' के स्थान पर 'प' की प्राप्ति से प्राप्त 'प' को द्वित्व 'ए' की प्राप्ति २.१५३ से संस्कृत प्रत्यय 'ईय' के स्थान पर 'णय' आदेश; ३-२५ से प्रथमा