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* प्राकृत व्याकरण 2
भवतः । चकारात् केरश्च ॥ परकीयम् । पारक । परक्कं । पारकरं ॥ राजकीयम् । राइक्कं । रायके ।
अर्थ:-संस्कृत शमन ‘पर और राजा के अन्त में प्रत्यायुमा सुश्रा हो तो प्राकृन में 'इदमर्थ' प्रत्यय के स्थान पर' में 'क्क प्रादेश और 'राजन' में 'इक्क' आदेश होता है; तथा मूल सूत्र में 'च' लिखा हुआ है; अत: चैकल्पिक रूप से 'कर' प्रत्यय की भी प्राप्ति होती है । उदाहरण इस प्रकार है:-परकीयम्=पारकक; परक्कं अथवा पारकरं ॥ राजकीयम् राइतकं अथवा रायकेर ।।
पारक रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-४४ में की गई है।
परकीयम् संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप परक्क होता है । इसमें सूत्र संख्या २-६४६ से कीय' के स्थान पर 'क' का श्रादेश; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर परक्कं रूप सिद्ध हो जाता है।
पारकर रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-४४ में की गई है।
राजकीयम संस्कृत रूप है । इमकं प्राकृत रूप रोइक्क और रायकर होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'ज्' का लोप; २-१४८ से संस्कृत प्रत्यय 'कीय' के स्थान पर 'इक्क' का आदेश १-१० से लोप हुए 'ज' में से शेष रहे हुए 'अ' के आगे 'इक्क' की 'इ' होने से लोप; ३-२४ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप राइकं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(राजकीयम्-) रायकरं में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'ज' का लोप; १-१८० के लोप हुए 'ज' में से शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; २-१४८ से संस्कृत प्रत्यय कीय' के स्थान पर 'कर' का श्रादेश; और शंप मानिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप रायकरं भी सिद्ध हो जाता है॥२-४
युष्मदस्मदोल-एच्चयः ॥२-१४६ ॥ आभयां परस्येदमर्थस्याज एचय इत्यादेशो भवति ॥ युष्माकमिदं यौष्माकम् । तुम्हेच्चयं । एवम् अम्हेच्चयं ॥
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम युष्मत और अस्मत में 'इदमर्थ' के वाचक प्रत्यय 'अर' के स्थान पर प्राकृत में 'एश्चय' का आदेश होता है। जैसे-'युष्माकम् इदम् न्यौष्माकम् का प्राकृत रूप 'तुम्हेश्चयं' होता है। इसी प्रकार से 'अस्मदीयम्' फा अम्हश्चयं होता है।
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