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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अप्पणचं रूप सिद्ध हो जाता है । २-१५३ ।।
त्वस्य डिमा-त्तणो वा ।। २.१५४ ॥ त्व प्रत्ययस्य डिमा तण इत्यादेशी वा भवतः ।। पीणिमा । पुफिमा । पीणतणं । पुष्फत्तणं । पहे। पीणत्तं । पुष्फत्तं ॥ इम्नः पृथ्वादिपु नियतत्वात् तदन्य प्रत्ययान्तेषु अस्य विधिः ।। पीनता इत्यस्य प्राकृते पीणया इति भवति । पाणदा इति तु भापान्तरे । ते नेह तती दान क्रियते ॥
अर्थ:--संस्कृत में प्राप्त होने वाले 'त्व' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में पैकल्पिक रूप से 'इमा' और 'तण' प्रत्यय का आदेश हुआ करता है। जै-पी गोणिया मार पीणत्तणं और वैकल्पिक पक्ष में पीण भी होता है । पुष्पत्वम्-पुरिफमा अथवा पुःफत्तणं और वैकल्पिक पक्ष में पुष्फत् भी होता है। संस्कृत भाषा में पृथु आदि कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनमें 'स्व' प्रत्यय के स्थान पर इसी अर्थ को बतलाने थाले 'इमन्' प्रत्यय की प्राप्ति हुआ करती है। उनका प्राकृत रूपान्तर अन्य सूत्रानुसार हुश्रा करता है। संस्कृत शब्द 'पीनता' का प्राकृत रूपान्तर 'पीणया' होता है । किसी अन्य भाषा में पीनता' का रूपान्तर 'पीणदा' भी होता है। तदनुसार 'ता' प्रत्यय के स्थान पर 'दा' आदेश नही किया जा सकता है। अतः पीणदा रूप को प्राकृत रूप नहीं समझा जाना चाहिये।
पीनत्वम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप पीणिमा, पोणत्तणं और पीण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; २-१५४ से संस्कृत प्रत्यय 'त्वम्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'इमा' आदेश का प्राप्ति होकर प्रथम रूप पाणिमा को सिद्धि हो जाती है।
द्वितीय रूप-(पीनत्वम्-) पोणतणं में सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति २-१५४ से संस्कृत प्रत्यय 'त्व' के स्थान पर ताण थादेश; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्रार 'म प्रत्यय का अनुस्वार होकर पीणत्तर्ण द्वितीय रूप भी सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप-(पीनत्वम्) पीणत्तं में सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति - से 'व' का लोप: २-८६ से शेप 'त' को द्वित्व' '' की प्राप्ति और शेष साधनिको द्वितीय रूप के समान ही होकर तृतीय रूप पीणतं भी सिद्ध हो जाता है।
पुष्पत्यम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पुफिमा, पुष्फत्तणं और पुरफ होते हैं। इनमें से