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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्रापि और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर छोरं रूप सिद्ध है ज्ञाता है।
सरिन्छो रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १-४४ में की गई है।
वृक्षः संस्कृत का है । इसका प्राकृत रूप वच्छो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-१२६ से ' के स्थान पर 'श्र की प्राप्ति; २-१७ से 'क्ष' के स्थान पर 'छको प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'क' को द्वित्व 'छ' की प्राप्ति २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ.' को च' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छो रुप सिद्ध हो जाता है।
मक्षिका संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मच्छिा होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से '' के स्थान पर 'छ.' की प्रारित २-८ प्राप्त; 'छ.' को द्वित्व छ, छ. की प्राप्ति; २-६. से प्राप्त पूर्व 'छ,' को 'घ' फी प्राप्ति और १०९७७ से 'क्' का लोप होकर मच्छिा रूप सिद्ध हो जाता है।
क्षेत्रम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप छेत् होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'नके स्थान पर '' को प्राप्ति; २-७६ से '' में 'स्थित' 'र' का लोप; :-८६ से 'शेफ' 'त' को द्वित्व 'स' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्रारत म्' का अनुस्वार होकर छत्तं रूप सिद्ध हो जाता है।
छुहा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७ में की गई है।
बक्षः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप दच्छो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'क्ष' के स्शन पर 'छ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'छ को द्वित्व 'छ, छ' की प्राप्ति; :-० से प्राप्त पूर्व छ' को 'च' की प्राप्ति और ३-२ प्रथमा विमक्ति के एक व वन में अकारान्त पुल्लिप में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इच्छा रूप मि हो जाता है।
कुच्छी रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३५ में की गई है।
पक्षावक्षर संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप बच्छं होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; - से प्राप्त 'छ' को द्वित्व छ, छ की प्रानि; २-६ से शप्त, पूर्व 'छ' को 'च' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त न्यजन 'स' का लोप, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर घर रूप सिद्ध हो जाता है।
क्षुण्णः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप छुएणी होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'इ' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में
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