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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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प्राति; ८ से 'ख' वर्ण को द्वित्व 'ख रख' की प्राप्ति; ६ से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्तिः १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा-विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म प्रत्यय की प्रारित; और ..२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर पक्रवाणं रूप सिद्ध हो जाता है।
ट्याघ्रः संस्कृन रूप है । इसका प्राकृत रूप बग्यो होता है। इप्समें सूत्र-संख्या :-७८ से 'य' का लोप; १-८४ से शेष 'वा' में स्थित्त दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; -७ से 'र' का लोप २-८ से 'घ' को द्वित्व 'घुघु' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्य 'घ' को 'ग्' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वग्यो रूप सिद्ध हो जाता है।
मूछा-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मुच्छा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २. से 'र' का लोप; और १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति होकर मुच्छा रूप सिद्ध हो जाता है।
निन्झरो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १.६८ में की गई है। भट्ठ रूप की सिद्धि सूत्रः ६.२४ों की है। तित्थं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८४ में की गई है।
निर्धनः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप निद्धरणो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-५६ से 'र' का लोप; २-८६ से शेष 'ध' को द्वित्व 'ध' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व धू' को 'द्' की प्राप्ति १-२२८ से द्वितीय 'न' को 'ण' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निदधणी रूप सिद्ध हो जाता है ।
गरफम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप गुप्फ होना है। इसमें सूत्र-संख्या २-91 से 'ल' का लोप; २-८८ से शेष 'फ' को द्वित्व "फफ' की प्राप्ति; २-६० से प्रात पूर्व 'फ्' को 'प' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर गुप्फ रूप सिद्ध हो जाता है।
निर्भरः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप निमसे होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७६ से 'र' का लोप; २-4 से शेष 'भ' को द्वित्व भूम' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'म' को 'ब' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निम्भरी रूप सिद्ध हो जाता है।
जन्खो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-८६ में की गई है।