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# शियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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होता है । जैसेः- वैढूर्यम् = ( श्रादेश रूप ) वैकलिधं और पक्षान्तर में -- ( व्याकरण-सूत्र-सम्मत रूप)
बेडुज्जं ॥
संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वेरुलिश्रं और बेडुज्जं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप सूत्र संख्या २-१३३ से आदेश प्राप्त रूप है ।
द्वितीय रूप - (वैर्यम् = ) वेदुज्जं में सूत्र संख्या - १-१४८ से दीर्घ 'पे' के स्थान पर हस्व स्वर 'ए' की प्राप्ति तथा १-८४ ''स्वर'' की प्राप्ति २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन '' के स्थान पर 'ज' रूप आदेश की प्राप्ति २-८ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्तिः ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १- २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप बेहजं सिद्ध हो जाता है || २-२३३||
एसिंह एत्ता हे इदानीमः ॥२- १३४॥
अस्य एतावादेशौ वा भवतः ॥ एहि एत्ताहे । इं ||
अर्थ :- संस्कृत श्रव्यय 'इदानीम्' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'एसिंह' और 'सत्ता' ऐसे दो रूपों को प्रदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- इदानीम् = (आदेश प्राप्त रूप ) - एसिंह और एताई तथा पक्षान्तर में - (व्याकरण-सूत्र सम्मत रूप) इणिं ।।
एह रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १२७ में की गई है ।
sarait संस्कृत अव्यय रूप है। इसका आदेश प्राप्त रूप एत्ता हे सूत्र संख्या २-१३४ से होता है। आणि रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १६ में की गई है ।।२-१३४||
पूर्वस्य पुरम: ।।२-१३५॥
पूर्वस्य स्थाने पुरम इत्यादेशो वा भवति । पुरिमं पुई ॥
अर्थ:-- संस्कृत शब्द 'पूर्व' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'पुरिम' ऐसे रूप की प्रदेश प्राप्ति होती हैं। जैसे- पूर्वम् = ( आदेश प्राप्त रूप ) - पुरिमं और पक्षान्तर में - ( व्याकरणसूत्र सम्मत रूप) - पुवं ॥
पूर्वम संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पुरिमं और पुत्र होते हैं। इनमें से प्रथम रूप पुरिमं सूत्र संख्या २-०३५ से प्रदेश प्राप्त रूप हैं ।
द्वितीय-रूप- (पूर्वम् ) = पुष्त्रं में सूत्र संख्या १०८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति २७६ से 'र' का लोपः २-३६ से 'र' के लोप होने के बाद 'शेष' 'व' को द्वित्व 'स्व' की