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* प्राकृत व्याकरण #
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माप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप पुथ्वं सिद्ध हो जाता है। ॥२-१३५॥
त्रस्तस्य हित्य-तट्टो ॥२-१३६॥ त्रस्त शब्दस्य हित्थतहः इत्यादेशी घा भवतः ॥ हित्थं । तट्ट तत्थ ।।
___ अर्थ:- संस्कृत शब्द 'बात' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'हित्य' और 'तट्र' ऐसे दो रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:-स्तम् = आदेश प्राप्त रूप)-हित्थं और तटुं तथा पक्षान्तर में-(व्याकरण-सूत्र-सम्मत रूप)-तत्थं ।।
अस्तम संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृन-रूप हित्थं, तट्ट और तत्थं होते हैं । इनमें प्रथम दो रूप हित्थं और नई सूत्र संख्या २-१३६ से आदेश प्राप्त रूप हैं।
तृनीय रूप-(प्रस्तम् ) तत्थं में सूत्र संख्या २.७६ से 'त्र' में रहे हुए 'र' का लोप; २-४५ से 'स्त' के स्थान पर 'थ' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'य' को द्वित्व 'थ' की प्रामि; २-६० से प्राप्त पूर्व 'थ्' के स्थान पर 'त' की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तृतीय रूप तत्थं भी सिद्ध हो जाता है॥२-१३६॥
बृहस्पतो बहोभयः ॥२.१३७॥ बृहस्पति शब्दे वह इत्यस्यावयवस्य भय इत्यादेशो वा भवति ॥ मयस्सई भयष्फई ॥ पक्षे । बहस्सई । बहप्पई बहपई ॥ वा वृहस्पती (१-१३८) इति इकारे उकारे च चिहस्सई । बिहफई। बिहप्पई । बुहस्सई । हप्फई । हामई ।
अर्थः-संस्कृत शब्द 'वृहस्पत्ति' में स्थित 'बह' शब्दावयव के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'भय' ऐसे श्रादेश-रूप की प्राप्ति होती है । जैसे:-बृहस्पनिः भयस्सई, भयाफई और भयपर्छ !| पक्षान्तर में ये तीन रूप होते हैं:--बहरसई, बहफई और बहप्पई । सूत्र-संख्या १-१३८ से 'बृहस्पत्ति' शब्द में रहे हुए 'ऋ' स्वर के स्थान पर वैकल्पिक रुप से कभी 'इ' स्वर की प्राप्ति होती है तो कभी 'उ' म्वर की प्राप्ति होती है; तदनुमार बृहस्पति शब्द के बह प्राकृत रूप और हो जाते हैं; जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:-विहस्सई, बिहाफई, हिप्पई, बुहस्सई बुहाफई और घुहप्पई ॥
भयमई और भयरफई रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या २.६६ में की गई है। ये दोनों रूप बारह रूपों में से क्रमशः प्रथम और द्वितीय रूप हैं।
वृहस्पतिः संस्कृत रूप है। इसका-(बारह हपों में से तीसरा) प्राकृत रूप भयापई होता है।