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* प्राकृत व्याकरण *
स्त्रिया इत्थी ॥२- १३०॥
स्त्री शब्दस्य इत्थी इत्यादेशो वा भवति ॥ इत्थी थी ।
अर्थ:-संस्कृत शब्द 'खो' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'इत्थी' रूप आदेश की प्राप्ति होती हैं। जैसे :- स्त्री इत्थी अथवा थी |
स्त्री संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप इत्थी और थी होते हैं। इनमें से प्रथम रूप को प्राप्ति सूत्र संख्या ५- १३० से 'स्त्री' शब्द के स्थान पर आदेश रूप से होकर प्रथम रूप इत्थी सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप - ( स्त्री = ) 'थी' में सूत्र- संख्या २-४५ से 'स्तु' के स्थान पर 'थ' की प्राप्ति; और २- ७१ से 'त्र' में स्थित 'र' का लोप होकर द्वितीय रूप थी सिद्ध हो जाता है | १६-१३०||
धृतेर्दिहिः ॥२- १३१॥
वृति शब्दस्य दिरित्यादेशो वा भवति ।। दिही थिई ।
अर्थः - संस्कृत शब्द 'धृति' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'दिहि' रूप आदेश होता है। जैसे:- धृतिः दो अथवा थिई |
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दिही रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १- २०६ में की गई है।
धि रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०८ में की गई हैं ।। २ - १३१ ।।
मार्जारस्य मञ्जर- वञ्जरौ ॥२-१३२॥
मार्जार शब्दस्य मज्जर बजर इत्यादेशों वा भवतः ॥ भञ्जरो वझरो । पचे मज्जारो ॥
अर्थः- संस्कृत शब्द 'मार्जार' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से दो आदेश 'मञ्जरो और बरो' होते हैं। जैसे - मार्जारः = मञ्जरो अथवा वञ्जरो ॥ पक्षान्तर में व्याकरण-सूत्रसम्मत तीसरा रूप 'मज्जारी' होता है ।
मार्जार/ संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप मञ्जरी, बजरी और मजारों होते हैं। इनमें से प्रथम दो रूप सूत्र-संख्या २-१३२ से आदेश रूप से और होते हैं। तृतीय रूप-मज्जारो की सिद्धि सूत्रसंख्या १-२६ में की गई है ।।२-१३२।।
वैर्यस्य वेरुलि
॥२-१३३॥
वैडूर्य शब्दस्य वेरुलित्र इत्यादेशो वा भवति || वेरुलियं ॥ वेडुज्जं ॥
अर्थ :- संस्कृत शब्द 'वैडूर्य' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'वेरुलिय' श्रादेश
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