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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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अर्थः-संस्कृत अव्यय 'अधः' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'हेटुं' रूप की श्रादेश प्राप्ति होती है। से:-अधस् - जहढें ।
अधम् संस्कृत अध्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप हेटुं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१४१ से 'अधस्' के स्थान पर 'हे?" आदेश होकर हेटु रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-१४१ ।।
मातृ-पितुः स्वसुः सिषा-छो॥२-१४२ ।। ___ मातृ-पितृभ्याम् परस्य स्वसृशब्दस्य सिश्रा छा इत्यादेशी भवतः ॥ माउपिया । माउ-च्छा | पिउ सिमा । पिउ रुखा ॥
अर्थः - संस्कृत शब्द 'मातृ' अथवा 'पितृ' के पश्चात् समास रूप से 'स्वस शख्द जुड़ा हुआ हो तो ऐसे शब्दों के प्राकृत-रूपान्तर में 'स्व' शब्द के स्थान पर 'सिया' अथवा 'छा' इन दो आदेशों की प्राप्ति होती है। जैसे:-मातृ-घसा-माउ-सिआ अथवा माउ-च्छा ॥ पितृ-वसा=पिउ-सिमा अथवा पिउ च्छा।।
मातृ-घसा संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप माउ-सिया और माउछा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप माउ-सिआ' की सिद्धि सूत्र संख्या १-१३४ में की गई हैं।
_ द्वितीय रूप ( मातृ-ब्वसा%) माउ-नली में सूत्र संख्या २-१३४ से '' के स्थान पर '' स्वर की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त 'तु' में से 'त्' व्यसन का जोपः २-१४२ से 'स्वसा' के स्थान पर 'छा' आदेश की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'छ' के स्थान पर द्वित्व छ,छ' की प्राप्ति और म.६० से प्राप्त पूर्व 'छ,' के स्थान पर 'च' होकर द्वित्तीय रूप-माउ-च्छा भी सिद्ध हो जाता है।
पितृ-सा संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पिउ मिश्रा और पित्र-छा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप पिउ-सिआ की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२४ में की गई है।
द्विनीय रूप-(पितृ-वसा=)पिउच्छा में सूत्र संख्या -१३४ से 'अ' के स्थान पर 'उ' स्वर की माप्ति; १-१६७ से प्राप्त 'तु' में से 'त' व्यञ्जन का लोप; २.१४२ से 'बमा' के स्थान पर 'छा आदेश की प्राप्ति; २-६. से प्राप्त छ' के स्थान पर द्वित्व 'छछ' को प्राप्ति; और २-६ से प्राप्त पूर्व 'छ.' के स्थान पर 'घ' को प्राप्ति होकर द्वितीय रूप-पिउ-च्छा भी मिद्ध हो जाता है ।। -१४२।।
तिर्यचस्तिरिच्छिः ॥२-१४३|| तिर्यच शब्दस्य तिरिच्छिरित्यादेशो भवति ।। तिरिच्छि षेच्छइ ।। आर्षे तिरिया इत्यादेशी पि ! तिरिआ॥
अर्थ:-संस्कृत शब्द तिर्यच ' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'तिरिच्छि' ऐसा आदेश होता