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* प्राकृत व्याकरण *
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है । जैसे:-तिर्यक् प्रेक्षते-तिरिच्छि पेच्छइ । श्राप प्राकृत में 'तिर्यच' के स्थान पर 'तिरित्रा' ऐसे आदेश को भी प्राप्ति होती है। जैसे:-तिर्यक्-तिरिश्रा ।।
तिर्यक संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तिरिच्छि होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१४३ से 'तिर्यक् के स्थान पर 'तिरिच्छि' की आदेश-प्राप्ति होकर तिरिच्छि रूप सिद्ध हो जाता है।
प्रेक्षते संस्कृत क्रियापन का रूप है। इसका प्राकृत रूप पेच्छा होता है । इसमें सूत्र-संख्या २.७६. से 'र' का लोप; २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'छ' के स्थान पर द्वित्व 'छछ' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ,' के स्थान पर 'च की प्राप्ति; और ३-१३६ से वर्त. मान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय ते के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पेच्छद रूप सिद्ध हो जाता है ।
तिर्यक संस्कृत रूप है । इसका श्रार्ष-प्राकृत रूप तिरिया होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१४३ से 'तिर्यक्' के स्थान पर तिरिया' आदेश की प्राप्ति होकर तिरिारूप सिद्ध हो जाता है ।।२-१४३।।
गृहस्य घरोपतो ।।२-१४४॥ गृहशब्दस्य घर इत्यादशो भवति पति शब्दश्चत् परो न भवति ॥ घरो। घर-सामी । राय-हरं । अत्तावितिकिम् । गह-बई ।।
अर्थ:-संस्कृत शब्द 'गृह' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में 'घर' ऐसा आदेश होता है। परन्तु इसमें यह शत रही हुई है कि 'गृह' शब्द के श्रागे 'पति' शब्द नहीं होना चाहिये । यदि 'गृह' शब्द के आगे 'पति' शब्द स्थित होगा तो 'गृह' के स्थान पर 'घर' आदेश की प्राप्ति नहीं होगी । उदाहरण इस प्रकार है:-गृह-घगे। गृह-स्वामी-घर-सामी ॥ राज-गृहम् - राय-हरं ।।
प्रश्नः- 'गृह' शब्द के आगे 'पति' शब्द नहीं होना चाहिये, ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- यदि संस्कृत शब्द 'गृह' के आगे 'पति' शब्द स्थित होगा तो 'गृह' के स्थान पर 'घर' श्रादेश की प्राप्ति नहीं होकर अन्य सूत्रों के आधार से 'गह' रूप की प्राप्ति होगी । जैसे:-गृह-पतिः = गह-वई ॥
गृहः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप घरी होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१४४ से 'गृह' के स्थान पर 'घर' आदेश; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर घरो रूप सिद्ध हो जाता है।
गृह-स्वामी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप घर-सामी होता है । इसमें सूत्र संख्या २-१४४ से 'गृह' के स्थान पर 'घर' अादेश और २-७६ से 'व' का लोप होकर घर सामी रूप सिद्ध हो जाता है।