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* प्राकृत व्याकरस.*
पदातिः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पाइपको और पयाई होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-१३८ से पदाति' के स्थान पर 'पाइक्क' रूप की आदेश प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर प्रो प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप पाइको सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(पदातिः=) पयाई में सूत्र संख्या १-१७% से 'द्' और 'त्' दोनों व्यसनों का लोफ १-१८० से लोप हुए '' में से शेष रहे हुए 'श्रा' को 'या' की प्राप्ति; और ३.१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में ह्रस्व इकारान्त पुल्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' को प्राप्ति होकर द्वितीय रूप पयाई सिद्ध हो जाता है ॥२-१३८ ।।
दंष्ट्राया दाढा ।। २-१३६ ॥ पृथग्योगाद्वेति निवृत्तम् । दंष्ट्रा शब्दस्य दाहा इत्यादेशो भवति ।। दाढा । अयं संस्कृते पि ॥
अर्थ:-उपरोक्त सूत्रों में आदेश-प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है। किन्तु इस सूत्र से प्रारम्भ करके आगे के सूत्रों में वैकल्पिक रूप से आदेश-प्राप्ति का अभाव है; अर्थात् इन धागे के सूत्रों में श्रादेश प्राप्ति निश्चित रूप से है। अतः उपरोक्त सत्रों से इन सूत्रों की पारस्परिक-विशेषता को अपर नाम ऐसे 'पृथक योग' को ध्यान में रखते हुए 'वा' स्थिनि की-वैकल्पिक स्थिति की-निवृत्ति जानना इसका प्रभाव जानना । संस्कृत शब्द 'दंष्ट्रा' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'दादा' ऐसो आदेश-प्रोप्ति होती है। संस्कृत साहित्य में 'दंशके स्थान पर 'दादा' शब्द का प्रयोग भी देखा जाता है।
___दंष्ट्रा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप दाढा होता है। इसमें सूत्र संख्या २ १३६ से 'दंष्ट्रा' के स्थान पर 'दाढा' आदेश होकर दाढा रूप सिद्ध हो जाता है । २-१३६ ।।
बहिसो बाहिं-बाहिरौ ॥२-१४०॥ बहिः शब्दस्य बाहिं बाहिर इत्यादेशौ भवतः ।। बाहिं बाहिरै ।।
अर्थ:-संस्कृत अव्यय 'बहिस्' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'बाहिं' और 'बाहिर' रूप प्रादेशों की प्राप्ति होती है। जैसे:-बहिस् बाहिं और वाहिरं ।
बहिस् संस्कृत अव्यय रूप है । इसके प्राकृत रूप बाहिं और बाहिरं होते हैं। इन दोनों रूपों में सत्र संख्या २-१४० से 'बहिस्' के स्थान पर 'बाहि' और 'बाहिरं श्रादेश होकर दोनों रूप 'बाहिं' और 'बाहिर' सिद्ध हो जाते हैं ।। २-५४० ॥
अधसो हेढें ॥२-१४१ ॥ अधस शब्दस्य हेर्ल्ड इत्ययमादेशो भवति ।। हेहूँ ।
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