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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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इसमें सूत्र - संख्या १-९२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २.१३७ से प्राप्त 'वह' शब्दावयव के
स्थान पर प्रदेश रूप से 'भय' की प्राप्ति; २-७७ हलन्त व्यञ्जन 'स्' का लोप २-८६ से शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'प्प' की प्राप्तिः १ १७७ से 'तू' का लोप और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर भयप्पई रूप सिद्ध हो जाता है ।
बृहस्पतिः संस्कृत रूप है; इसका प्राकृत रूप - (बारह रूपों में से छठा ) बहपई होता है। इसमें सूत्र संख्या १-९२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और शेष साधनिका 'भयप्पई' के समान हो होकर पपई रूप सिद्ध हो जाता है ।
बसई और बहफई रूपों को सिद्धि सूत्र- संख्या २६६ में को गई है। ये दोनों रूप बारह रूपों में से क्रमशः चौथा और पाँचवा रूप है ।
बृहस्पतिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप - ( बारह रूपों में से सातवां ) बिहरूपई होता है । इसमें सूत्र- संख्या १-१३८ से 'ऋ' के स्थान पर कल्पिक रूप से 'इ' की प्राप्ति; २-६६ से संयुक्त व्यञ्जन 'रूप' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'स' की प्राप्ति २८ से प्राप्त 'स' को द्वि 'स' की प्राप्ति और शेष साधनिका उपरोक्त 'भय' रूप के समान होकर हिस्सई रूप सिद्ध हो जाता है ।
बिहफई आठवें रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१३८ में की गई हैं।
बृहस्पतिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप ( बारह रूपों में से नवत्रों ) बिहपई होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१३८ से ऋ' के स्थान पर वैकापक रूप से 'इ' की प्राप्ति और शेष साधनिका उपरोक्त 'भई' रूप के समान होकर विपई रूप सिद्ध हो जाता है ।
बृहस्पतिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप ( बारह रूपों में से दसवाँ ) - हम्स होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१३८ से 'ऋ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से '' की प्राप्ति और शेष माधनिका उपरोक्त बिसई रूप के समान ही होकर ब्रहस्वई रूप सिद्ध हो जाता है।
फई ग्यारहवें रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१३८ में की गई है !
पई बारहवें रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-५३ में की गई है ।।२-१३ ।।
मलिनोभय- शुक्ति-छुप्तारब्ध- दातेर्मइलावह-सिप्पि-विक्कादत्त
पाइक। २०३८ ।
मलिनादीनां यथासंख्यं महलादय आदेशा वा भवन्ति ॥ मलिनम् । महलं मलिणं ॥ उभयं । अव । उवहमित्यपि केचित् । श्रहो आसं । उपयबलं । श्रार्षे । उभयो कालं ॥ शुक्तिः । सिधी सुती ॥ छुतः । छिक्को छुतो ! आरब्धः । श्राहतो यारद्धो । पदातिः । पाक्को पयाई ।।