________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[३८३
skको रूप की मिद्धि सूत्र संख्या १-१४७ में की गई है।
मूर्चः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मुक्तो होता है। इसमें मुत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' को प्राप्ति; २.७६ से 'र' का लोप २ = से शेष 'ख' को द्वित्व 'ख ख की प्राप्ति, २.८ से प्राप्त पूर्व ख.' को 'क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग मे 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुकरखो रूप सिद्ध हो जाता है।
हाको रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २.२ में की गई है।
यक्ष: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जक्खा होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति २.० से 'क्ष' के स्थान पर रख की प्राप्ति :-८८ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जक्खो रूप की सिद्धि हो जाती है।
रग्गो रूप की मिद्धि सूत्र संख्या २-१० में की गई है। किच्ची रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१२ में की गई है। रुप्पी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-५ में की गई है। फमिणरे रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-७५ में की गई है।
स्खलितम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप खलिब होता है । इम में सूत्र संख्या २-७७ से हलन्त स्' का लोप; १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर खलिअं रूप सिद्ध हो जाता है।
थेरो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६६ में की गई है। खम्भो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २.८ में की गई है। विचुली रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२८ में गई है। भिण्डिवालो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८ में की गई है। ॥२-८८ ।।
द्वितीय-तुर्ययोस्परि पूर्वः ॥२-६०॥ द्वितीयतुर्ययोत्वि प्रसङ्ग उपरि पूर्वी भवतः ।। द्वितीयस्योपरि प्रथमश्चतुर्धस्योपरि तृतीयः इत्यर्थः ।। शेष। धक्खाणं 1 चग्यो । मुच्छा । निझरो । कट्ठ । तित्थं । निद्धणो । गुष्पं । निम्मरो ।। आदेश । जक्खो । पस्यनास्ति ॥ अच्छी । मज्झ । पट्ठी । वुडो । हत्थो।