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* प्राकृत व्याकरण *
अच्छी रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १-३३ में की गई हैं। मम रूप की सिद्धि सूत्र- संख्या २-२६ में की गई हैं । पट्टी रूप को सिद्धि सूत्र मंख्या १-१२६ में की गई है। कुड्डो रूप की सिद्धि सुत्र संख्या १-१३६ में को गई हैं । त्यो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-४५ में की गई हैं।
लिडो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-४६ में की गई हैं। युकं रूप की सिद्धि सूत्र- संख्या १-२२६ में की गई है। भिमली रूप की सिद्धि सूत्र मंख्या २-५८ में की गई है। ओखलं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ६-९७१ में की गई है।
नखः संस्कृत रूप है । इस के प्राकृत रूप नक्खा और नहा होते हैं । इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-६६ से 'ख' को द्वित्व 'ख' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को क' की प्राप्तिः ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर लोप; और ३-१२ से 'ख' में स्थिति अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' को दोष स्वर 'आ' की प्राप्ति हो कर प्रथम रूप नखा सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप- (नखाः = ) नहा में सूत्र संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और शेष साधनिका (प्रथमा बहु वचन के रूप में ) प्रथम रूप के समान हो होकर नहा रूप सिद्ध हो जाता है।
कथि-ध्वजः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कहओ और कन्धो होते हैं । इन में से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १ १०७ से 'प' का लोपः २००६ से 'व' का लोपः २८६ से शेष 'ध' को द्वित्व 'घ्ध' की प्राप्ति; २ ६० से प्राप्त पूर्व 'घ' को 'दू' की प्राप्तिः १-१७७ से जू का लोप और ३-२ प्रथम विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप कई इओ सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप- ( कपि-ध्वजः = ) कइ ओ में सूत्र संख्या १-१७७ से 'प' का लोप; ५-७६ से 'व' का लोप; १-१७७ से ज् का लोपः और ३-२ से प्रथम रूप समान ही 'ओ' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप कड़-ध भी सिद्ध हो जाता है ।
ख्यातः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप खायो होता है। इसमें सूत्र संख्या २७० से 'यु' का लोप; १-१७७ से 'तू' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खाओ रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-६॥
दीर्घे वा ॥२- ३१॥