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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
विभक्ति के एक बचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप वासं भो सिद्ध हो जाता है।
वर्षा संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप बरिमा और वासा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र मंख्या ५-१०५ से हलन्त व्यञ्जन 'र' में श्रागम रूए 'इ' की प्राप्ति; और १.२६० से 'प' के स्थान पर 'ए' की प्राप्तिका मषिमा ल्प सिम हो पाता है।
वासा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४३ में की गई है।
वर्ष- शतम संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वरिस-सयं और वाम-सायं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१०५ से हलन्त व्यञ्जन र' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२६० से 'प' फे स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-२६० से द्वितीय 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति: १-१७४ से 'न' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'तू' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-१५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रश्रम रूप परिस-सयं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(वर्ष-शतम् = ) वास-सय में सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप; १-४३ से 'व' में स्थित 'अ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति; १-२६० से 'ष' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप, १-१८० से लोप हुए'न' में से शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ मे प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप पास-सयं भी सिद्ध हो जाता है।
परामर्ष: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप रामरिसो होता है। इस में सूत्र-संख्या २-१०५ से द्वितीय हलन्त 'र' में श्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२६० से ष' के स्थान पर 'म' को प्राप्तिः और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुलिंजग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर परामरितो रूप सिद्ध हो जाता है।
हर्षः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हरिसो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१०५ से हलन्त म्यञ्जन 'र' में प्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति; ५-२६० से ष के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर हरिसी रूप सिद्ध हो जाता है।
अमर्षः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अमरिसो होता है। इस में सूत्र संख्या २०१०५ से हलन्त व्यञ्जन 'र' में श्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२६० से '' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर अमरिसो रूप सिद्ध हो जाता है।