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* प्राकृत व्याकरण
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हलन्त व्यञ्जन 'क' में श्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति २-६६ से प्राप्त 'कि' में स्थित 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; ३-५ से प्रथमा निफि के गाल नयन में पायान्त नासक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप सुस्किलं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(शुलम् =) सुहल में सूत्र-संख्या १.२६० से 'श् के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; २.१८६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'क' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; ६-१७ से प्रात 'कि' में स्थित ग्यजन 'क' का लोप और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप मुलं भी सिद्ध हो जाता है।
इलोक संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सिलोयो होता है । इसमें सूत्र संख्या २.१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'श' में प्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२६० से प्राप्त 'शि में स्थित 'श' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; १-१४७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर सिलीओ रूप सिद्ध हो जाता है।
कलेशः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप किलेसो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'क' में प्रागम रूप 'इ' की प्राग्निः १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर किलेसो रूप सिद्ध हो जाता है।
आम्लम, संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप अम्बित होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-५४ से दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर हस्त्र खर 'अ' की प्राप्ति; २-५६ (१) हलन्त 'म्' में हलन्त 'ब' रूप
आगम की प्राप्ति; २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित एवं आगम रूप से प्राप्त 'ब' में आगम रूप 'ई' की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अम्मिले रूप सिद्ध हो जाता है।
ग्लायति संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप गिला होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'ग' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'य' का लोप; ६-१० से लोप हुए 'य' में शेष रहे हुए स्वर 'अ' का लोपः ३-१३६ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गिलाइ रूप सिद्ध हो जाता है।
ग्लानम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप गिलाणं होता है। इसमें सुत्र-संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'ग' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर '' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारांत नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान
Basium
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