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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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'र' वर्स का और 'ण' वर्ग का परस्पर में व्यत्यय होकर पाणारसी रूप मिद्ध हो जाता है।
एषः संस्कृत सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत कम एप्तो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३ से मून संस्कृत एतद् सर्वनाम के स्थान पर एप रूप का आदेश नाति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'बी' प्रत्यय की प्रानि होकर एसो' रूप सिद्ध हो जाता है। एषः = एसो की साधनिका निम्न प्रकार से भी हो सकता है। सूत्र-संख्या १-२६० से 'प' के स्थान पर 'स' को प्राप्ति और १-६७ से विमर्ग' स्थान पर 'बी' को प्राप्त कर एपो । शिस हो जाता है।
करणः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप-(पुर्ति नग में )--करेणू होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुस्लिम में 'सि प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्त्र स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ॐ' की प्राप्ति होकर करेया रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-११६॥
श्रालाने लनोः ॥२-११७॥ बालान शन्दे लनोर्व्यत्ययो भवति ।। आणालो । आणाल खम्मी ।।
अर्थ:-संस्कृत शब्द श्रालान के प्राकृत-रूपान्तर में 'ल' वर्ण का और 'न घर्ण का परस्पर में व्यत्यय हो जाता है । जैसे:-पालानः = आपालो ।। बालान-स्तम्भः = श्रापाल-खम्भो ॥ .
भालान: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप प्राणालो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-११७ से 'ल वर्ण को और 'न वर्ण का परस्पर में व्यत्यय और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आणालो रूप सिद्ध हो जाता है। श्राणाल-क्खम्भी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २०६७ में की गई है ।।२-११७।।
अचलपुरे व-लोः ॥२.११८॥ अचलपुर शब्दे चकार लकारयो व्यत्ययो भवति || अलचपुरं ।।
अर्थः-संस्कृत शब्द अचलपुर के प्राकृन-रूपान्तर में 'च' वण का और 'ल वर्ग का परस्पर में व्यत्यय हो जाता है । जैसे:-अचलपुरम् = अलचपुरं ||
अचलपुरम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूपान्तर अलचपुरं होता है। इसमें सूत्र संख्या ५-११८ से 'च' वर्ग का और ल' वर्ण का परस्सर में व्यत्यय; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अलचपुरं रूप सिद्ध हो जाता है ।।
महाराष्ट्र हरोः ॥२-११६॥