________________
+ प्रिमोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
४१७]
|
रूप मसूर
व्यञ्जन 'द्वा के पूर्व में स्थित हलन्त व्यजन 'द्' में वैकल्पिक रूप से श्रागम रूप 'उ' की प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:-पद्मन - पउर्म अथवा पोमं ।। छाम् = छ उमं अथवा छम्नं ।। मूर्खः = मुरुक्खो अथवा मुक्खा ॥ द्वारम् दुवार और पनान्तर में द्वारम् के वारं, देरं और दारं रूप भी होते हैं।
पउमं और पोम्मं दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-१ में की गई है।
छन्नम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप छ उमं और छम्नं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसंख्या २-११२.से संयुक्त व्यसन म में स्थित पूर्व हलन्त व्यतन 'द' में वैकल्पिक रूप से प्रागम रूप 'उ' की प्राप्ति १-१७७ से प्राप्त 'दु' में से 'द्' का लोप; ३-०५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त मूका अनुम्बार होकर प्रथम रूप छउमे सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(छमम् =) छम्म में सूत्र-संख्या २-७७ से हलन्त 'द्' का लोप; २-२ में शेष 'म' को द्विस्व 'म्म' को प्राप्ति और शेष सावनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप छम्मं भी सिद्ध हो जाता है।
मूर्खः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप मुरुस्खो और मुक्खो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-११२ से संयुक्त व्यन्जन ख' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'र' में वैकल्पिक रूप से प्रागम रूप 'ज' की प्राप्ति; २.८९ से शेष ख' को द्वित्व 'ख ख' की प्राप्रि; २-६० से प्राप्त पूर्व 'ख' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रुप मुसक्खो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप मुक्खो को सिद्धि सूत्र-संख्या २-८८ में की गई है। दुवारं, बारं, देरं और दारं इन चारों रूपों को सद्धि सूत्र संख्या १-४६ में की गई है ॥२-१९६।।
तन्वीतुल्येषु ॥२.११३॥ उकारान्ता ङीप्रत्ययान्तास्तन्वी तुल्याः। तेषु संयुक्तस्यान्त्य व्यञ्जनात् पूर्व उकारो भवति ॥ तणुवी । लहुवी । गरुवी । बहुवी ! पुहुवी । मउवी ।। क्वचिदन्यत्रापि । धनम् । सुरुग्धं ।। आ । सूक्ष्मम् । सुहुमं ॥
___ अर्थ:-उकारान्त और 'डी' अर्थात् 'ई' प्रत्ययान्त तन्वी =(तनु + ई = तन्वी) इत्यादि ऐसे शब्दों में रहे इस संयुक्त व्यञ्जन के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन में आगम रूप 'उ' की प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:
तन्दी =(तनु + ई =) तणुवी । लध्वी (लघु + ई =) लहुवी । गुर्वी = (गुम + ई =) गरुवी । बही= (बहु + ई =) बहुची । पृथ्वी-(पृथु + ई =) पुहुवी । मृद्री = (मृदु + ई =) मउवी ॥ इत्यादि ।