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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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ईसरो रूप की सिद्धि सुन-संख्या १-८४ में की गई है।
द्वेष्यः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रुप वेमो होता है 1 इम में सुत्र-संख्या२-७५ से 'द' का लोप २-७८ से 'य' का लोप; १-२६० से 'घ' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पेसो रूप मिद्ध हो जाता है।
लास्यम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृन रूप लासं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.७८ से 'य' का लोप; ३-२५ से १थमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुमक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म् , का अनुस्वार हो कर लास रूप सिद्ध हो जाता है।
आस्यम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप आम होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-० से य' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्रामि और १-२३ से प्रातमका अनस्वार होकर आसं रूपमिद्ध हो जाता है।
प्रेयः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप पेसा होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-६ से 'र' का लोप: २-७८ से " य् ' का लोप; १-२६० से 'प, का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर ओ प्रत्यय की प्राप्ति होकर पेसो रूप सिद्ध हो
जाता है।
ओमालं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३८ में की गई है। थाणा रूप को सिद्धि सूत्र-संख्या २-८३ में की गई हैं।
आज्ञप्तिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप श्राणत्ती होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४२ से 'झ' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिा २-५७ से 'प' का लोप; २-46 से शेष 'त' को द्वित्व 'स' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारान्त स्त्रीलिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर. अन्त्य हस्त्र स्वर 'इ' के स्थान पर दोर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर आणती रूप सिद्ध हो जाता है।
___आझपनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप आणवणं होता है। इसमें सूत्र संख्या :-४२ से 'ज्ञ' के स्थान पर 'ण' को प्राप्ति १-२३१ से 'प' का 'व'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर आणषणं रूप सिद्ध हो जाता है।
तंसं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२६ में की गई है। संझा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६ में की गई है। विझो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२५ में की गई है।
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