________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[३६५
अर्थ:-किसी संस्कृत शब्द में यदि हलन्त रूप से 'क', ग, . ड. द्, प श , प स, जिह्वामूलीय ४क, और उपध्मानीय प् में से कोई भी वर्ण अन्य किमी वाण के साथ मे पहल रहा हुआ हो तो ऐसे पूर्वस्थ और हलन्त वर्ण का प्राकृत-रूपान्तर में लोप हो जाता है । जैसे:-'क' के लोप के उदाहरणभुक्तम्-भु और मिक्थम् = भित्थं । 'ग के लोप के उदाहरण:-दुग्धम-दुद्धं और मुग्धम-मुद्र । '' के लॉप के उदाहरसा:-पट्परः -- छप्पा और कट्फलम् = कप्फलं ।। 'ड' के लोप के उदाहरण:--खड्गःखग्गो और षड्रजः-पउने । 'न के लाप के उदाहरणः-उत्पलम् = उप्पलं और उत्पातः = उत्पाश्रो ।। 'द के लोप के उदाहरण:-मद्गु:-मग्गू और मुद्गरः मोग्गरो ।। 'प' के लोप के उदाहरण-सुप्त:-सुत्तो और गुप्तः = गुत्ती ॥ 'श' के लोप के उदाहरण:-अक्षणम-लए; निश्चलः गच्चलो और श्चुतते- चुअइ ।। 'ए' के लोप के उदाहरण:-गोष्ठी-गोट्ठी; पष्ठः : छट्ठो और निष्ठरः-निठुरो ।। 'स' के लोप के उदाहरण:- स्खलितः = खलिश्री और स्महः = न हो : 'क' के लो५ का उदाहरणः-दुखम् - दुरस्त्रं
और 'एप' के लोप का उदाहरण:-अंत पात:-तप्पाओ ॥ इत्यादि अन्य उदाहरणणों में भी उपरोक्त हलन्त एवं पूर्व स्ववर्णों के लाप होने के स्वरूप को समझ लेना चाहिये ।
भुक्तम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप भुर्त होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'क' वरण का लोप; २-८८ से शेष 'त' को द्वित्व 'त' की प्रारित; ३-५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर भुत्वं रूप सिद्ध हो जाता है।
सिक्थम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सित्थं होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७७ में पूर्वस्थ एवं हलन्त 'क' वर्ण का लोप; ८६ से शेष रहे हुए 'थ' को द्वित्व थथ की प्राप्ति; २-६० से प्राप्न पूर्व 'थ' को 'त्' की प्राप्ति; ३--५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.५३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर सित्थं रूप सिद्ध हो जाता
___ दुग्धम, संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप दुद्धं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ और हलन्त 'ग' वर्ण का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'घ' को द्वित्व 'धध' को प्राहिः २०६० से प्राप्त पूर्व '' को 'द्' की प्राप्ति; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्न नपुसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर दुद्ध रूप सिद्ध हो जाता है।
मुग्धम् संस्कृत विशेषण रूप है। इस का प्राकृत रूप मुद्ध होता है । इस में मूत्र संख्या २-५७ से पूर्वस्थ और हलन्त 'ग' वर्ण का लोप; 2-4 से शेष रहे हुए 'ध' को द्वित्व 'धध' की प्रामि २.५० में प्राप्त पूर्व 'ध' को 'द्' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक जिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार हा कर मुछ रूप सिद्ध हो जाता है।