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* प्राकृत व्याकरण *
दुक्खं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २७२ में की गई है ।
अंत — पातः संस्कृत रूप हैं। इसका प्राकृत रूप तप्पा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ पूर्वस्थ एवं हलन्त उपध्मानीय वर्ग चिह्नन का लोप; २-८ह से शेष रहे हुए 'प' वर्ण को द्वित्व 'प' की प्राप्ति १०९७७ से द्वितीय 'तू' का लोप और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अंतापाओ रूप की सिद्धि हो जाती है ।२२७७ अधो मनयाम् || २- ७८ ॥
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मनयां संयुक्तस्याधो वर्तमानानां लुग् भवति ॥ म । जुग्गं । रस्मी । सरो | सेरं ॥ न । नग्गो || लो | य । सामा। कुछ हो ॥
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अर्थः- यदि किसी संस्कृत शब्द में 'म', 'न' अथवा 'य' हलन्त व्यञ्जन वर्ण के यागे संयुक्त रूप से रहे हुए हों तो इनका लोप हो जाता है। जैसे- 'म' वर्ण के लोप के उदाहरण: - युग्मम्-जुग्गं ॥ रश्मिः = रस्सी । स्मः - सरो ओर स्मेरम्= सेरं ॥ 'न' वर्ग के लोप के उदाहरणः नग्नः = नग्गो और लग्नः=लग्गो | || 'य' वर्ण के लोप के उदाहरणः- श्यामा सामा | कुड्यम् =कुछ और व्याधबाहो ||
जुरां रूप की सिद्धि सूत्र- संख्या २६२ में की गई है ।
रस्सी रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३५ में की गई है ।
सरो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-७४ में की गई है।
स्मेरम, संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सेरं होता है। इसमें सूत्र संख्या २७८ से 'म्' का लोप; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १०२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सरं रूप सिद्ध हो जाता है ।
स्थान
नग्नः संस्कृत विशेषण रूप हैं। इसका प्राकृत रूप नग्गो होता है। इसमें सूत्र संख्या २- से द्वितीय 'न्' का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'ग' को द्वित्व 'गुग' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नग्गो रूप सिद्ध हो जाता है ।
लग्नः - संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप लग्यो होता है। इसमें सूत्र संख्या से 'न' का लोप २-८६ से शेष रहे हुए 'ग' को द्वित्व 'युग की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लग्गो रूप सिद्ध हो हो जाता है । सामा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२६० में की गई है।
कुड्यम् संस्कृत रूप हैं । इसका प्राकृत रूप कुछ होता है। इसमें सूत्र संख्या २७ से 'य' का
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