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* प्राकृत व्याकरण *
'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छुण्णी रूप सिद्ध हो जाता है।
___ कक्षा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कच्छा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से '' के स्थान पर 'छ,' की प्राप्ति; २८८ से प्राप्त 'छ'' को द्वित्व 'छ. छ' को प्राप्ति और २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ,' को 'च' की प्राप्ति होकर कच्छा रूप सिद्ध हो जाता है।
क्षारः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत छारो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति और ३२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन मे अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छारो रूप सिद्ध हो जाता है ।
कुच्छेार्य रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१६१ में की गई है।
शुरः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप छुरो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'च' के स्थान पर 'छ,' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रो रूप सिद्ध हो जाता है।
उक्षाः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उच्छा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'न' के स्थान पर 'छ,' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'छ' को द्वित्य 'छ. छ' की प्राप्ति और २.६ • से प्राप्त पूर्व 'छ.' को च की प्राप्ति होकर उच्छा रूप सिद्ध हो जाता है।
क्षतम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप छयं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; १-१७ से 'त्' का लोफः १-१८० से लोप हुए 'तू' में से शेष २६ हुए 'श्र' को 'थ' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर छयं रूप सिद्ध हो जाता है।
साहश्यम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सारिच्छं होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-६४२ से 'ह' के स्थान पर 'रि' का श्रादेश; २-१७ से 'च' के स्थान पर 'छ,' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छ छ' की प्राप्ति २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ' को 'च' की प्राप्ति; २-७८ से 'य' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सारिच्छं रूप सिद्ध हो जाता है।
स्थगितम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप छइथ भी होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से की वृत्ति से संयुक्त व्य ञ्जन 'स्थ' के स्थान पर 'छ' का आदेश; १-१७७ से 'ग्' का और 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म का अनुस्वार होकर छानों रूप सिद्ध हो जाता है।