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* प्राकृत व्याकरण
क्षणः (उत्सव) संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप छणो होता है। इस में सूत्र-संख्या २-२० से संयुक्त व्यन्जन 'द' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारा. न्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छणों रूप सिद्ध हो जाता है।
क्षणः (काल वाचक) संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप खणो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिा में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खणो रूप सिद्ध हो जाता है । २-२० ।।
ह्रस्वात् थ्य-श्व-स-प्सामनिश्चले ॥२-२१॥ हस्वात् परेषां थ्य श्च स प्सां छो भवति निश्चले तु न भवति ।। थय । पच्छ । पच्छा । मिच्छा ॥ श्च । पच्छिम । अच्छेरं । पच्छा ॥ स । उच्छाहो । मच्छलो । मच्छरो । संवच्छलो। संवच्छो । चिइच्छह || प्स | लिच्छइ । जुगुच्छह । अच्छरा । द्वस्वादिति किम् । ऊसारियो । अनिश्चल इति किम् । निश्चलो । आर्षे तथ्ये चो पि । तच्चे ॥
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. अर्धः-यदि किसी शब्द में इस्त्र स्वर के बाद में 'थ्य; श्च; स; अथवा प्स में से कोई एक श्रा जाय, तो इनके स्थान पर 'छ' को प्राप्ति होती है। किन्तु यह नियम 'निश्चल' शब्द में रहे. हुए 'श्च' कं लिये नहीं है। यह ध्यान में रहे । 'थ्य' के उदाहरघा इस प्रकार है:-पथ्यम-परछं । पथ्या-पच्छा ।। मिथ्या मिच्छा इत्यादि । 'श्च' के उदाहरण इस प्रकार हैं:-पश्चिमम् पच्छिमं। आश्चर्यम् अच्छे । पश्चात-पच्छो ।। 'स' के उदाहरण इस प्रकार हैं:-उत्साहो उच्चाहो । मत्तर: अच्छतो अथवा मच्छरो। संवत्सरः-संवच्छलो अथवा संवच्छरो । चिकित्मति-चिइच्छइ ।। 'प्स' के उदाहरण इस प्रकार हैं:-लिप्सते लिच्छह ।। जुगुप्सति-जुगुच्छह ।। अप्सरा-अच्छरा । इत्यादि ।।
प्रश्नः-स्व स्वर' के पश्चात हो रहे हम हों तो 'थ्य'. 'श्च' 'स' और 'रस' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होती है। ऐसा क्यों कहा गया है ?
___ उत्तरः-यदि 'भ्य, श्च, त्स और रस दीर्घ स्वर के पश्चात रहे हुए हों तो इनके स्थान पर 'छ' की प्राप्ति नहीं होती है। अतः 'हस्व स्वर' का उल्लेख करना पड़ा। जैसे:-उत्सारित ऊसारिओ । इस उदाहरण में प्राकृत रूप में 'ऊ' दीर्घ स्वर है; अतः इसके परवर्ती स' का 'छ' नहीं हुआ है । यदि प्राकृत रूप में इस्व स्थर होता तो 'न्स' का 'छ हो जोता।
प्रश्न:-'निश्चल' शब्द में हस्व स्वर 'इ' के पश्चात् हो 'श्च' रहा हुश्रा है तो फिर 'श्व के स्थान पर प्राप्तव्य'छ' का निषेध क्यों किया गया है?
उत्तर:-परम्परागत प्राकृत साहित्य में निश्चलः संस्कृत शब्द का प्राकृत रूप "निश्चतो' ही उप