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* प्राकृत व्याकरण *
बाष्प शब्दे संयुक्तस्य हो भवति अश्रुण्यभिधेये ।। बाहो नेत्र-जलम् ॥ अश्रुणीति किम् ।। चपको ऊन्मा ||
अर्थः -यदि संस्कृत शब्द 'बाष्प' का अर्थ आंसू वाचक हो तो ऐसी स्थिन में 'बाष्प' में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'प' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है। जैसे:---बापः-बाहो अर्थात आंखों का पानी
आंसू ॥
प्रश्न:-अश्रु वाचक स्थिति में ही 'बाष्प' शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यजन 'आप' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है, अन्यथा नहीं जो हों, बाइ लया है ?
उत्तरः- संस्कृत शब्द 'याष्प' के दो अर्थ होते हैं; प्रथम तो आंसू और द्वितीय भाप । तदनुसार अर्थ-भिन्नता से रूप-भिन्नता भी हो जाती है। अतएव 'बाष्प' शब्न के श्रांसू अर्थ में प्राकृत रूप बाहो होता है और भाफ अर्थ में प्राकृत रूप बप्फो होता है। यों रूप-भिन्नता समझाने के लिये ही संयुक्त-व्यञ्जन 'प' के स्थान पर 'ह' होता है ऐसा स्पष्ट उल्लेख करना पड़ा है। यों तात्पर्य विशेष को समझ लेना चाहिये । काष्यः (आँसू ) संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप बाहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७० से संयुक्त व्यञ्जन 'प' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बाहो रूप सिद्ध हो जाता है।
बाष्पः (भाफ) संस्कृत रूप है। इसका प्रकृत रूप बष्फो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से दोध स्वर 'आ' के स्थान पर हस्व स्वर 'श्र की प्राप्ति; २-५३ से संयुक्त व्यञ्जन 'प' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति २-८८ से प्राप्त 'फ' को द्वित्व 'कफ' की प्राप्ति २-१० से प्राप्त पूर्व 'क' को 'प' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बप्फो रुप सिद्ध हो जाता है। ।। २-७० ।।
कार्षापणे ॥२-७१ ॥ कर्षापणे संयुक्तस्य हो भवति ।। काहावणो । कथं कहावणो । हस्वः संयोगे (१-८४) इति पूर्वमेव हस्वत्वे पश्चादादेशे । कर्षापण शब्दस्य वा भविष्यति ।।
अर्थः-संस्कृत शब्द 'कार्षापण' में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'ई' के स्थान पर ह' की प्राप्ति होती है । जैसे:-कापापणः = काहावरणो॥
प्रश्नः-प्राकृत रूप 'कहावणों' की प्राप्ति किस शह से होती है ?
उत्तरः--संस्कृत शब्द 'कापापण' में सूत्र संख्या १-८४ से 'का' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति होने से 'कहावणों' रूप बन जाता है । इसी प्रकार से 'काहावणो' रूप माना जाय तो प्राप्त ह्रस्व स्वर 'या' के स्थान पर पुनः 'या' स्वर रूप श्रादेश की प्राप्ति हो जायगी;