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* प्राकृत व्याकरण *
पस्तम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूपान्तर पल्जट्ट' और पल्लत्थं होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २०६८ से संयुक्त व्यञ्जन 'ये' के स्थान पर द्वित्व 'ल्ल' की प्राप्तिः २-४७ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्त' के स्थान पर 'द' की प्राप्तिः २८६ से प्राप्त 'ट' की द्वित्य 'ट्ट' की प्राप्ति ३-२५ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप पहलğ सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप पल्लत्थे को सिद्धि सूत्र संख्या २४७ में की गई है । अन्तर इतना सा है कि वहाँ पर 'पल्लत्थो' रूप पुल्लिंग में दिया गया है एवं यहाँ पर पल्लत्थं रूप नपुंसक लिंग में दिया गया है । इसका कारण यह है कि यह शब्द विशेषण है; और विशेषण-वाचक शब्द तोनों लिंगों में प्रयुक्त हुआ करते हैं । पल्लाणं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२५२ में की गई हैं ।
सोमल्लं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०७ में की गई है।
पत्येकः संस्कृत रूप हूँ । इसके प्राकृत रूप पल्लंको और पलियं को भी होते हैं । इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २७८ से '' का लोप २-८६ से शेष रहे हुए 'ल' को द्वित्व 'ल्ज' को प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारांत पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर पल्लेको रूप सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप ( पल्यंकः )= पलिश्रंको में सूत्र संख्या २- १०७ से हलन्त व्यञ्जन 'ल' में 'य' वर्ग श्रागे रहने से आगम रूप 'इ' स्वर की प्राप्ति १-१७७ से 'य्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप को भी सिद्ध हो जाता है ।। २-६६ ॥
बृहस्पति-वनस्पत्योः सो वा ॥ २६६ ॥
अनयोः संयुक्तस्य सो वा भवति । बहस्सई चहफई ॥ भवरसई ॥ मयप्कई । वसई वई ॥
अर्थ:-संस्कृत शब्द बृहस्पति और वनस्पति में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'प' के स्थान पर विकल्प से 'स' की प्राप्ति हुआ करती है। 'विकल्प' से कहने का तात्पर्य यह है कि सूत्र संख्या २-५३ मैं ऐसा विधान कर दिया गया है कि संयुक्त व्यञ्जन 'एप' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति होती हैं। किन्तु यहाँ पर पुनः उसो संयुक्त व्यञ्जन 'स्व' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति का उल्लेख करते हैं; अतः 'वदतो वचन-व्याघात' के दोष से सुरक्षित रहने के लिये मूल-सूत्र में विकल्प अर्थ वाचक 'बा' शब्द का कथन करना पड़ा है। यह ध्यान में रखना चाहिये । उदाहरण इस प्रकार हैं:- बृहस्पतिः = बहस्सई tear बहई और भयम्सई अथवा भयफई || वनस्पतिः = वणरूपई अथवा वणफई ॥
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