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'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गिम्ही रूप सिद्ध हो जाता है ।
उमा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उन्हा होता है। इस में सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति और २-०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर 'मह' आदेश की प्राप्ति हो कर उम्दा रूप सिद्ध हो जाता है ।
अम्हारिस रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-६७ में की गई हैं।
विस्मयः संस्कृत विशेषण रूप है। इस का प्राकृत रूप विन्हओ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७४ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्म' के स्थान पर 'म्ह' आदेश की प्राप्ति १-१७७ से 'य' का तोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्डिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वह रूप सिद्ध हो जाता है ।
* प्राकृत व्याकरण *
ब्रह्मा संस्कृत रूप है । इस का प्राकृत रूप बम्हा होता है। इस में सूत्र संख्या २००६ सेर का लोप और २ ७४ से संयुक्त व्यञ्जन 'हम' के स्थान पर 'म्ह' आदेश की प्राप्ति होकर बम्हा रूप सिद्ध हो जाता है ।
सुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सुम्हा होता है ।
इसमें सूत्र संख्या २-७४ से संयुक्त व्यञ्जन 'हा' के स्थान पर 'ह' आदेश की प्राप्ति ३-४ प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में प्राप्त 'ज' प्रत्यय का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के पूर्व में स्थित अन्त्य 'अ' स्वर को दीर्घ स्वर 'या' की प्राप्ति होकर सुहा रूप सिद्ध हो जाता है ।
म्हणो रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है। बरं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-५६ में की गई है।
ब्राहणमः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप (ब्रम्हणो के अतिरिक्त) बम्भणी भी होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ से 'र' का लोपः १-४ से दोर्घ स्वर 'था' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; २ - ७४ की वृत्ति से संयुक्त व्यञ्जन 'ह्म' के स्थान पर 'म्भ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बम्भणो रूप की सिद्धि हो जाती है।
ब्रह्मचर्यम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप (बम्हचेर के अतिरिक्त) बम्रं भी होता है । इसमें सूत्र संख्या २७१ से 'र' का लोप; २०७४ की वृत्ति से संयुक्त व्यञ्जन 'हा' के स्थान पर 'हम' आदेश की प्राप्ति; १-५६ से 'च' में स्थित 'अ' स्वर के स्थान पर 'ए' स्वर की प्राप्ति; २७८ से 'थ' का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म्
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