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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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और कारण रूप द्धि हो जायगा ॥ श्रथवा मूल शब्द माना जाय तो इम का प्राकृत रूपान्तर 'कहावणो' हो जायगा; यो 'कार्य'ए' से 'काहात्रयों और कप' से 'कहाषणों' रूपों की स्वयमेव सिद्धि हो जायगी ।
कार्याः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप काहावयो और कहावणो होते हैं; इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २७१ से संयुक्त व्यञ्जन षं' के स्थान पर 'ह' की प्राप्तिः १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'ब' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप काहाणी सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप (कर्षाः) कहावणां में सूत्र संख्या १-८४ से 'का' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान स्वर 'अ' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप कहाषणो भी सिद्ध हो जाता है ॥२-७१ ॥
पर
दुःख दक्षिण- तीर्थे वा ॥२-७२॥
एषु संयुक्तस्य हो वा भवति ।। दुहं दुक्खं । पर दुकाले दुखिया विरला । दाहियो दक्खियो । तू वित्थं ॥
अर्थः-संस्कृत शब्द 'दुःख'; 'दक्षिण' और तीर्थ में रहे हुए संयुक्त 'ख'; 'क्ष' और 'थं' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति होती है । उदाहरण इस प्रकार है:- दुःखम् दुहं अथवा दुक्ख ॥ पर दुःखे दुःखिताः विरलाः = पर दुक्खे दुखि विरला || इम उदाहरण में संयुक्त व्यञ्जन ':' के स्थान पर वैकल्पिक स्थिति को दृष्टि से 'ह' रूप आदेश को प्राप्ति नहीं करके जिव्हा मूलीय चिन्ह फा लोप सूत्र संख्या २००७ से कर दिया गया है। शेष उदाहरण इस प्रकार है:- दक्षिणः = दाहिणो अथवा दक्षिणो ॥ तीर्थम् = तूहं अथवा तित्थं ॥
दुःखम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप दुई और दुक्खं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसंख्या २-०२ से संयुक्त व्यञ्जन- (जिन्हा मूजीय चिन्ह सहित ) 'ख' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप दुह सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप ( दुःखम् = ) दुक्ख में सूत्र - संख्या २७७ से जिल्हा मूलीय चिह्न 'कू' का लोप; २-८४ से 'ख' को द्वित्व 'खूख' की प्राप्तिः २०६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्रर्शम और शेष माधनिका प्रथम रूप के समान ही हो कर द्वितीय रूप दुख भी सिद्ध हो जाता है।
पर-दुःखे संस्कृत सप्तम्यन्तरूप है । इतका प्राकृत रूप पर दुक्खे होता है । इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से जिल्हा मूलीय चिह्न 'कू' का लोपः २०२६ से 'ख' को द्वित्वं 'ख' की प्राप्ति २०१० से प्राप्त