________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[३५१
ध्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तरं रूप सिद्ध हो जाता है।
सुन्नेरं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५७ में की गई है।
शैाण्डीयम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप साण्डीर होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-१५६ से दीर्घ स्वर 'ओं के स्थान पर द्वस्व स्वर 'श्री' की प्राप्ति; २-६३ से संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भू' प्रत्यय की माप्त और १-२३ से प्रारत 'म्' का अनुस्वार होकर सोण्डीर रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-६३॥
धैर्ये वा ॥ २-६४ ॥ धैर्य यस्य रो वा भवति ॥ धीरं धिज्ज ॥ सरो सुज्जो इति तु सूर-र्य-प्रकृति-भेदात् ।।
अर्थः-संस्कृत शब्द 'धैर्य' में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर विकल्प से 'र' की प्राप्ति होती है । जैसे-धैर्यम्-धीरं अथवा विजं ।। संस्कृत शब्द 'सूर्य' के प्राकृत रूपान्तर 'सूरो' और 'सुज्जो यों दोनों रूप नहीं माने जाय । किन्तु एक ही रूप 'सुजजों' ही माना जाय !! क्योंकि प्राकृत रूपान्तर 'सूरो' का संस्कृत रूप 'सूरः' होता है और 'सूर्यः' का 'सुज्जो ॥ यो शब्द-भेद से अथवा प्रकृति-भेद से सूरो और सुज्जो रूप होते हैं। यह ध्यान में रखना चाहिये ।।
धैर्यम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूपान्तर धीरं और धिज होते हैं। इनमें से प्रथम रूप धीर की सिद्धि सत्र-संख्या १-५५५ में की गई है।
द्वितीय रूप धिज्ज में सूत्र-संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऐ' के स्थान पर हस्व म्बर (अर्थात् 'ऐ' का पूर्व रूप-अ +इ)='इ' की प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त ध्यान 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २८६ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'जज' की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप विज भी सिद्ध हो जाता है ।
___सूरः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूपान्तर सूरो होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुरो रूप सिद्ध हो जाता है।
सूर्यः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सुज्जो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'अ' के स्थान पर हस्व स्वर 'ज' को प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-८९