________________
३५० ]
* प्राकृत व्याकरण *
नपुंसक लिंग में "स' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और :१-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप जुम्म सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप में सूत्र-संरत्या १-२४५ से 'य' का 'ज'; २.७८ से 'म्' का लोप; २-८६ से शेष 'ग' को द्वित्त्व 'मग' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान हा होकर द्वितीय रूप जुम्ग भी सिद्ध हो जाता है।
तिग्मम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप तिम्म और तिग्गं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-६२ से संयुक्त व्यञ्जन 'ग्म' के स्थान पर विकल्प से 'म' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'म' को द्वित्व 'म' की प्राप्ति, ३-२५. से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप तिम सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या २-७८ से 'म् का लोप; २-८८ से शेष 'ग' को द्वित्व 'ग' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप तिग्गं भी सिद्ध हो जाता है ।।२-६२।।
ब्रह्मचर्य-तूर्य-सौन्दर्य-शौण्डीपें यों रः ॥२-६३॥ एषुर्यस्य रो भवति । जापचादः ॥ धम्हचेरं || चौर्य समत्वाद् बम्हचरिअं । तूरं । सुन्दरं । सोंडीरं ॥ .
अर्थः–संस्कृत शब्द ब्रह्मचर्य, सूर्य, मौन्दर्य और शौण्डीर्य में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति होती है। सूत्र संख्या २-२४ में कहा गया है कि संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति होती है। जबकि इस सूत्र संख्या २-६३ में विधान किया गया है कि ब्रह्मचर्य आदि इन चार शब्द में स्थित 'य' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होती है; जैसे | ब्रह्मचर्यम्=बम्हचरं । सूर्यम् = तूरं । सौन्दर्यम् - सुन्दरं और शौण्डीर्वम्-सोण्डोरं ।। सूत्र-संख्या २-१०७ के विधान से अर्थात् 'चौर्य-सम' आदि के उल्लेख से ब्रह्मचर्यम् का वैकल्पिक रूप से 'बम्हचरिअं' भी एक प्राकृत रूपान्तर होता है।
बम्हचेर रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५९ में की गई है।
अम्हचर्यम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप बम्हचरिश्र होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से आदि अथवा प्रथम 'र' का लोप; २-७४ से 'झ' के स्थान पर 'मह' की प्राप्ति; २-१०७ से 'य' में स्थित 'र' में 'इ' रूप आगम की प्राप्ति; १-१७७ से 'य' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की पाप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर म्हचरिम रूप सिद्ध हो जाता है।
तूर्यम, संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तूर होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-६३ से संयुक्त