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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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. : ज्ञानम् संस्कृत रूप है । इसका मकन रूप णाणं होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-४२ से संयुक्त व्यजन 'ज्ञ' के स्थान पर 'ग' का प्राप्ति; ५.८ से 'न' का ''; ३.५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर म प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म. का अनुस्वार होकर णाणं रूप सिद्ध हो जाता है। ' संज्ञा संस्कृत रूप है। इसका पान रूप मण्णा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४२ से संयुक्त व्यजन 'ज्ञ' के स्थान पर 'ण' की प्राति और १.३० मे अनुस्वार को आगे 'ण' का मद्भाष होने से स्वर्ग के. पंचमाक्षर रूप हलन्त 'ण' की प्राप्नि होकर सण्णा रूप सिद्ध हो जाता है।
प्रज्ञा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पएमा होना है। इसमें सुत्र-मंख्या २-से 'र' का लोप; २.४२ से संयुक्त-व्यजन 'ज्ञ' के स्थान पर ' को पारित और २.८ से प्राप्त 'ण' को द्वित्व 'एण की प्राप्ति होकर परणा रूप मित्र हो जाम है विक्षन
इसका प्राकृत रूप विरणाणं होता है इस में सून- संख्या २-४२ से संयुक्त व्यञ्जन 'न' के स्थान पर 'प'; ३-२५ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारांत नपुसक लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर विण्णाणे रूप सिन्द हो जाता है ।। २-४ ।।
पञ्चाशत-पञ्चदश-दत्ते ॥ २-४३ ।
एषु सयुक्तस्य णो भवति ।। परणासा | परणरह । दिएणं ।। अर्थः- पञ्चाशत् , पञ्चदश और दत्त शब्दों में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'च' के स्थान अथवा 'त' फे स्थान पर 'ण' की प्राप्ति होती है । जैसे:--पञ्चाशत-परणासा ।। पश्चरश-पएणरह और दत्तम्-दिएणं ।।
पञ्चाशत संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पएणासा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४३ से संयुक्त व्यञ्जन 'न' के स्थान पर 'णु' की प्राप्ति; २.८ से प्राप्त 'ण' को द्वित्व 'रण' की प्राप्ति; १-२६० से 'श' का 'स; १.१५ से प्राप्त 'स' में 'श्रो स्वर की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'त्' का लोप होकर पण्णासा रूप सिध्द हो जाता है।
पञ्चदश संस्कृत विशेषरण है। इसका प्राकृत रूप पगारह होता है । इममें सूत्र-संख्या २-४३ से संयुक्त व्यञ्जन 'रब' के स्थान पर 'ण' की प्राति: २.८६ से प्राप्त 'or' को द्वित्व 'गण' की प्राप्ति; १-२१६ से 'द' के स्थान 'र' की प्राप्ति और १-२५६ से श के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति हो कर पण्णरह रूप सिध्द हो जाता है। दिण्ण रूप की सिदि सूत्र संख्या १-४६ में की गई है। २-४३ ।
मन्यो न्तो वा ।। २.४४॥ मन्यु शब्द संयुक्तस्य न्तो वा भवति ॥ मन्तू मन्नू ॥