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* प्राकृत व्याकरण *
रुक्मी संस्कृत विशेषण है। इसके माकृत रूप रुकमी और सप्पो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-५२ की वृत्ति से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर 'कम' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप रुक्ष्मी सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या २-५२ से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर 'प' को प्राप्ति और २-- से प्राप्त 'प' को द्विस्व 'प' की प्राप्ति होकर रुप्पी रूप सिद्ध हो जाता है ।।२-५२॥
प-स्पयोः फः ।। २.५३ ॥ प-स्पयोः फो भवति । पुष्पम् । पुर्फ ॥ शष्पम् । सफ॥ निष्पेषः। निष्फेसो ॥ निष्पावः । निष्फावो ॥ स्पन्दनम् । फन्दणं ॥ प्रतिस्पर्धिन् । पाडिपकद्धी । बहुलाधिकारात् क्वचिद् विकल्पः । बुहप्पई बुहप्पई ।। क्वचिन्न भवति ।। निष्पहो । णिप्पुसणं । परोप्परम् ।।
___ अर्थ-जिन संस्कृत शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन 'प' अथवा 'स्प होता है तो प्राकृत रूपान्तर में इन संयुक्त व्यजनों के स्थान पर 'फ' को प्राप्ति होती है । जैसे-पुष्पन% पुष्र्फ ॥ शष्पम्-त ।। निष्पेष:-निफेसो ।। निष्पावः =निष्फावो ।। स्पन्दनम् फन्दणं और प्रतिस्पर्धिन = पाडिफद्धी ।। 'बहुलं' सूत्र के अधिकार से किसी किसो शब्द में 'ज्य' अथवा 'स्प' के होने पर भी इन संयुक्त व्यजनों के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति विकल्प से होता है । जैसे-बृहस्पतिःम्बुहरफई अथवा बहुप्पई ।। किसी किसी शब्द में तो संयुक्त व्यञ्जन स्प' और 'आप' के स्थान पर 'फ की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे-निष्प्रभः = निप्पहो । निष्पु'सनम् णिप्पुसणं ।। परस्परम् परोप्परं । इत्यादि ।
पुष्फ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१३६ में की गई है।
शष्पम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप साफ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २.५३ से संयुक्त व्यश्चन '५' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति; २८६ से प्राप्त 'फ' को द्वित्र फ्फ की प्राप्ति २-६० से प्राप्त पुर्व 'फ' को 'प' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सप्फ रूप सिद्ध हो जाता है।
निष्पेषः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप निःफेसो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.५३ से संयुक्त न्यजन 'रूप' के स्थान पर 'फ' को प्राप्ति, २.८६ से प्राप्त 'फ' को द्वित्य 'फा' की प्राप्ति, २०६० से प्राप्त पूर्व 'फ' को 'प' की प्राप्ति; १-२६० से 'ष' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय की प्राप्ति होकर निफसी रूप सिध्द हो जाता है।
निष्पाक संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप निष्कायो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-५३से संयुक्त ध्यञ्जन 'आप' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति;२-६ से प्राप्त 'फ' को द्वित्वपफ को प्राप्ति २-६० से प्राप्त