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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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पूर्व 'फ' को 'प' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभा केत के एक बचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय का प्राप्ति होकर निष्फावी रूप सिद्ध हो जाता है।
सन्तनम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप फन्दणं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-५३ से संयुक्त व्यजन स्प' के स्थान पर 'फ' का प्राप्ति; १-२२८ से द्वितीय 'न' का 'ग'; ३.२५ से प्रथमा विभक्नि के एक बचन में अकारान्त नपुसक जिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर फन्दणं रूप सिद्ध हो जाता है।
पाडिप्फची रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४४ में की गई है।
बृहस्पति: संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रुप बुहरफई और बुहापई होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-१३८ से 'ऋ' के स्थान पर 'उ' की प्रादित; २-५३ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्व' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति; २८६ से प्राप्त 'फ' को द्वित्व 'फ' को प्राप्ति; २-१० से प्राप्त पूर्व 'फ' को 'प' की प्राप्ति; १.९७७ से 'त' का लोप और ३.१६ से प्रथमा विभस्ति के एक वचन में हत्व इकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दो स्वर 'ई' का प्रारित होकर प्रथम रूप बुहप्फई सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या -१३८ से 'ऋ' के स्थान पर 'उ' को प्राप्ति २-५७ से 'स' का लोप; २-4 से शेष 'प को द्विस्त्र 'पप' को प्राप्ति और शेष साधनिका का प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप बुहप्पई मो सिद्ध हो जाता है।
निष्प्रभः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप निप्पहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.७७ से 'ए' का लोप; २-७६ से 'र' का लोप, २-८६ से शेष 'प' को द्वित्व पप की प्राप्ति; १-१८७ से 'भ' का 'ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारांत पुल्जिम में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निष्पहो रूप सिद्ध हो जाता है।
निधूसनम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप णिप्पुसणं होता है । इसमें सूत्र-संख्या २.७७ से 'ए का लोप; २-८६ से १ को द्विस्य 'एप' को प्राप्ति; १.२८ से दोनों 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुन्धार होकर णितर्ण रुप सिद्ध हो जाता है।
परोप्परं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-97 में की गई है ॥२-५३।।
भीष्मे मः ॥२-५४ ॥ भीष्मे मस्य फो भवति ॥ भिष्फो ।