________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित .
[ ३२७
सार्तिकः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप वत्तिो होता है । इस में सूत्र-संख्या १-८५ से 'पा' में स्थित दीर्घ स्वर 'मा' के स्थान पर 'श्र की प्रामिः २-७६ से 'र' का लोप, २-८८ से 'स' को द्वित्व 'श' की प्राप्ति; ५-१७७ से 'छ का लोप और ३-२ में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के पान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वार्तमो रूप सिद्ध हो जाता है।
कार्तिकः संस्कूल ब सका प्राकृत रूप कत्तिो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से 'का' . पित दीघ स्वर 'श्रा' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-5 से 'र' का लोप; २-८६ से 'त' को द्वित्वत्त' को प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कत्तिओ रूप सिद्ध हो जाता है।
उत्पर्सितः संस्कृत विशेषण रूप है। इसको प्राकृत रूप उक्कत्तिो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ६-७७ से प्रथम हलन्त 'त्' का लोप; २-16 से 'क' को द्वित्व 'क' की प्रालि, २-० से 'र' का लोप, - सेलोपहुए 'ब' में से शेष बचे हुए 'त' को द्वित्व 'त्त की प्राप्तिः १-१७७ से अंतिम 'त' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक घचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्रानि होकर उपकत्तिओ रूप सिद्ध हो जाता है।
कर्तरी संस्कृत रूप है। इसका प्राप्त रूप कत्तरी होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'र' का लोप और २-८८ से 'त' को द्वित्व 'स' की प्राप्ति होकर कत्तरी रूप सिद्ध हो जाता है।
मतिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुत्ती होता है । इममें सूत्र-संख्या १-८४ से दोष स्वर '3' के स्थान पर सस्य स्वर 'उ' की प्राप्ति; २-७६ से 'र' का लोप और ३.१६ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में इकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर मुत्ती रूप सिद्ध हो जाता है।
मूर्तः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप मुत्तो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'क' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति; २-७६ से र' का लोप और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुतो रूप सिद्ध हो जाता है।
सुहूर्तः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुहुत्तो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'हू' में स्थित दीर्घ स्वर '' के स्थान पर हरक स्वर 'उ' की प्राप्ति; २-४ से 'र' का लोप; २.८८ से 'त' को द्वित्व 'त' की प्राप्ति मौर ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिय में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुहुत्तो रूप सिद्ध हो जाता है।
. बार्ता संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप बट्टा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से 'बा' में * स्थित दीर्घ स्वर 'अर' के स्थान पर हस्थ म्बर 'म की प्राप्तिः २.३० से संयुक्त व्यञ्जन 'त' के स्थान पर