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* प्राकृत व्याकरण *
बिच्छदृडो । पछिट्टी । कपर्दः = कवड्डो। मर्दितः = मडिडी और समर्दितः = संमड्डियो।।
संमर्दः सस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप समज हो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३६ से संयुक्त व्यञ्जन ई के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; : RE से प्राप्त 'ड' को द्वित्व'ड्ड' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थानपर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर समस्डो रूप सिद्ध हो जाता है।
विदिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप विअड्डी होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१४४ से "त' का लोप; २-३६ से संयुक्त व्यञ्जन ई के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; २.१६ से प्राप्त 'ड' को द्वित्व 'दृ' की प्राप्ति; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में इकारान्त स्त्रीलिंग में मि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर. 'इ' को दीर्घस्वर 'ई' की प्राप्ति होकर विअद्धी रूप सिद्ध हो जाता है।
विच्छः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विच्छङ्को होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३६ से संयुक्त व्यञ्जन 'द' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; २.८८ से प्राप्त 'ड' को द्वित्व 'ड' की प्राप्ति और ३.२ से प्रथमा विमक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पिच्छडी रूप सिद्ध हो जाता है।
मुञ्चति-(छर्दते !) संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप छहद होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४-६१ से 'मुच्' धातु के स्थान पर 'छड लु' का आदेश; (अथवा छर्द, में स्थित संयुक्त भ्यञ्जन 'ई' के स्थान पर २-३६ मे 'ड्र' की प्राप्ति और २-८६ से प्राप्त 'ड्र' को 'द्वित्व' 'इ' की प्राप्ति); ४-२३६ से प्राप्त एवं हलन्त 'ड्रड' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और •३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' (अथवा 'ते') के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छहडइ रूप सिद्ध हो जाता है।
छादः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप छड़ी होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३६ से संयुक्त जन 'ई' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'ड' को द्वित्व 'ई' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में हत्व इकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य इस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' को प्राप्ति होकर छड्डी रूप सिद्ध हो जाता है।
कपः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कवडो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३१ से 'प' का 'व'; २-३६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ई' के स्थान पर 'ड' की प्रामि; २-८८ से प्राप्त 'ड' को द्वित्व 'ड' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कवड्डी रूप सिद्ध हो जाता है।
मर्दितः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप मडिओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३६ से संयुक्त व्यञ्जन 'द के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २८ से प्राप्त 'ड' को द्वित्व 'इ' की प्राप्ति; १-१७७