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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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प्राप्त 'ट' को द्वित्व 'ट' की प्राप्ति: और १-१७७ से 'क' का लोप होकर मट्टिा रूप सिद्ध हो जाता है।
पत्तनम संस्कृत रूप है। इसका प्रावत रूप पट्टणं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'त्त' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति; २.८६ से प्राप्त 'ट' को द्वित्व 'दृ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' कर 'ण'; ३-०५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म का अनुस्वार होकर पट्टणं रूप सिद्ध हो जाता है। कवष्टियो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या 1-77४ में की गई है। ॥२६॥
तस्यातादौ ॥ २-३०॥ तस्य टो भवति धृतोदीन् वर्जयित्वा ॥ केवट्ठी । बट्टी । जट्टो। पयट्टा ॥ वट्टले । काय बट्टयं । नट्टई । संवष्टि । अधूर्तादाविति क्रिम् । धुत्तो । कित्ती । बत्ता। आवत्तणं । निवक्षणे । पयत्तस्यं । संवत्तणं । श्रावत्तमओ। निवत्तो । निव्वत्तो । पवत्त। संवत्तो । धत्तिया । चचियो । कचियो । उपकत्तियो । कारी । मुत्ती । मुनो । महतो ।। बहुलाधिकाराद् धट्टा ॥ धूर्त । कीर्ति । वार्ता । श्रावर्तन । निवर्तन । प्रचत्तंन । संवर्तन । आवर्तक । निवतक । निर्वर्तक । प्रवर्तक । संवर्तक । यतिका । वार्तिक । कार्तिक । उत्कर्तित । कर्तरि । मूर्ति । मूर्त । मुहूर्त इत्यादि ।
अर्थ:-धूर्त श्रादि कुछ गक शब्दों को छोड़कर यदि अन्य किसी शब्द में संयुक्त व्यञ्जन 'त रहा हुआ हो तो इस संयुक्त व्लन 'त' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति होती है। जैसे:-फेवतः केवट्टो । पतिः वट्टी । अतः जट्टो । प्रवर्तते-पयट्टइ । वर्तुलम्वट्टलं । राज-वर्तकम-राय-बट्टयं । नर्शको नट्टई : संघर्तितम्-संवट्टिया
प्रश्नः-'धूर्त' श्रादि शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन 'त' की उश्रिति होते हुए भी इस संयुक्त व्याजन 'त के स्थान पर प्राम होने योग्य 'र' का निबंध चयों किया गया है. ? अर्थात् 'धूर्त आदि शब्दों में स्थित संयुक्त व्यन्जन 'त' के स्थान पर '' प्राप्ति का निषेध क्यों किया गया है ।
उत्तरः- क्यों कि धूर्त आदि अनेक शब्दों में स्थित संयुक्त व्यन्जन 'त' के स्थान पर परम्परा से अन्य विकार-श्रादेश-आगम-लोप श्रादि की उपलब्धि पाई जाती है; अतः ऐसे शब्दों की स्थिति इस सूत्र-संख्या २-३० से पृथक् ही रवायी गई है। जैसे:-धूर्त: धुतो । कीर्ति: कित्ती । वार्ता = वशा। आवर्तमम् श्रावणं । निवर्तनम - नियत्तणं । प्रवर्तनम्-पवत्तणं । संघर्तनम् संवत्तणं । आवर्तकःश्रावत्तो । निवर्सका निवत्तो । निर्वतका निम्वत्तओ । प्रवर्तकः पवत्तश्रो । संवर्तकः = संवत्तो । पर्तिका वत्तिया । वार्तिका वप्तिो । कार्तिकः = कत्तिो । उत्कर्तितः = उफ्फपिओ। कतरिः = कत्तरी (अथवा कर्तरीः= कत्तरी )। मूर्तिः=मुखी । मूर्तः = मुत्तो । और मुहूर्तः = मुटुत्तो ॥ इत्यादि अनेक