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* प्राकृत व्याकरण *
छी । छोरं । सरिच्छो । वच्छो । मच्छिमा । छे । छुहा । दच्छो । कुछ छी । वच्छं । छुएको। कच्छा । छारो । कुच्छे अयं । कुरो । उच्छा : छयं । सारिच्छं ।। अक्षि । इक्षु । लक्ष्मी । कक्ष । सुत । क्षीर । सदृक्ष । वृक्ष । मक्षिका । क्षेत्र । नुध् । दक्ष । कुक्षि । वक्षस् । क्ष एण । कक्षा । क्षार । कौशेयक । क्षर । उक्षन । क्षत । साहन्दय ।। क्वचित् स्थगित शब्दे पि । छा। आर्षे । इक्खू । खीरं । सारिक्खमित्याद्यपि दृश्यते ॥
अर्थ:---इस सूत्र में उल्लिखित अति आदि शब्दों में रहे हर संयुक्त व्यसन 'क्ष' का 'छ' होता है। सूत्र-संख्या २-३ में कहा गया है कि 'क्ष का ख' होता है। किन्तु का सूत्र में कहा जा रहा है कि संयुक्त 'क्ष' का 'छ होता है। अतः इस सुत्र को सूत्र-संख्या २-३ का अपवाद माना जाय । 'क्ष के स्थान पर प्राप्त 'छ' सम्बन्धी उदाहरण इस प्रकार है-अनिम्-अच्छि । इनुः= उच्छू । लक्ष्मी लच्छी। कज्ञः-कच्छो । चुतम् = छीध। ज्ञारम-छोरं। सरशः मरिच्छी । वृक्ष: बमछो । मक्षिका - मच्छिश्रा। क्षेत्रम् - छत्तं । शुधा= छुहा । क्श:-इच्छो । कुज्ञ:-कुच्छी। बलसम्बन्छ । क्षुण्णः-छुएणो। कता. कच्छा ! क्षारः-छारो। कौ क्षेयकम- कुच्छेधयं । तुर:-छुरो । उक्षा उच्छा। क्षतम् - छयं । साक्ष्यम्
सारिन्छ । कभी कभी स्थगित' शब्न में रहे हुए संयुक्त व्य-जन 'स्थ' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होती है। जैसे:-स्थगितम् = छश्यं ।। आर्ष प्राकृत में इनः का इक्खु भी पाया जाता है। क्षीरम का खीरं भी देखा जाता है और सारक्ष्यम् का सारिक्त्रम रूम भी पार्ष प्राकृत में होता है। इस प्रकार के रूपान्तर स्वरूप वाले अन्य शब्द भी पार्ष-प्राकृत में देखे जाते हैं !
अच्छि रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३५ में की गई है। उच्छू रूप को सिद्धि सूत्र-संख्या १-६५ में की गई है।
लक्ष्मी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप लच्छी होता है। इसमें मूत्र संख्या २-१४ से संयुक्त व्य ञ्जन 'क्ष' के स्थान पर 'छ,' की प्राप्ति; २-७८ ले 'म्' का लोप; २.८९ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छछ' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ' को 'च्' की प्राप्ति; और २.५१ से अन्त्य विसर्ग रूप व्यजन का लोप होकर लच्छी रूप सिद्ध हो जाता है ।।
कक्षा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कच्छी होता है । इसमें सूत्र संख्या २.१७ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ की प्राप्ति; २.८६ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छ छ' की प्राप्ति; २० से प्राप्त पूर्व 'क' को 'च' की प्राप्ति और ३.- से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कच्छो रूप सिद्ध हो जाता है।
छीअं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-६१२ में की गई है।
क्षीरम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हर होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७ से ज्ञ के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; ३-२५ से प्राथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि'