________________
સરસ્વતિહેન મણીલા tu * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[३०५
शिवम् संस्कृत द्वितीयान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप सिवं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; ३-५ से द्वितीया विभक्त के एक घचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सियं रूप सिद्ध हो जाता है। परमम् संस्कृत द्वितीयान्त विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप परमं होता है इसमें सूत्र-संख्या १-२३ से अन्य 'म्' का अनुस्वार होकर परमं रूप सिद्ध हो जाता
वृश्चिके श्चेञ्चुवा ॥ २--१६ ॥ वृश्चिक श्चेः सस्वरस्य स्थाने चुपदेशो वा भवति ।। छापवादः ॥ विञ्चुओ विचुनो । पक्षे । विञ्छिो ॥
अर्थः-वृश्चिक शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन सहित और उस में स्वर रहे हुए के साथ 'श्चि' के स्थान पर थर्थात् मंपूर्ण श्चि' के स्थान पर विकल्प से 'च' का आदेश होता है। सूत्र-संख्या २.२१ में ऐसा विधान है कि श्व' के स्थान पर 'छ होता है । जब कि इसमें 'श्चि' के स्थान पर 'न' का प्रादेश बतलाया गया है। अत: इम सूत्र को सूत्र-संख्या २-२१ का अपवाद समझना चाहिये । उदाहरण इस भकार है:
वृश्चिकः = विश्च श्री या विंचुभो ।। वैकल्पिक पक्ष होने से विञ्छिो भी होता है ।।
वृश्चिकः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप विश्च श्रो, विंचुओ और विच्छिी होते हैं। इनमें से प्रथम रूप विचुओ की सिद्धि सूत्र-रख्या १-१२८ में की गई है।
द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या १-०२८ से 'भू' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; २-१६ से 'श्चि' के स्थान पर 'च' का श्रादेश; १-२५ से श्रादेश रूप से प्राप्त 'च' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'म'का अनुस्वारः १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विंचुओ रूप सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप विछि ओ में सूत्र-संख्या १-१२८ से 'र' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; २.२१ से 'श्च के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; ५-२६ से अादेश रूप से प्राप्र 'छ' के पूर्व में अनुस्वार की प्राप्ति; १-३० से आगम रूप से प्राप्त अनुस्वार को परवर्ती छ' होने के कारण से छचर्स के पंचमाक्षर रूप हलन्त 'ब' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर "ओ" प्रत्यय की प्राप्ति होकर विञ्छिभो रूप सिध्द हो जाता है।
__ छोऽध्यादौ ॥२-१७॥ अदयादिषु संयुक्तस्य छो भवति । खस्यापवादः ।। अच्छि । उच्छू । लच्छी। कच्छो ।