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* प्राकृत व्याकरण *
पर पण्ठि मावेश होता है। 1-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण, ३-११ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्ब 'इ' का वीर्घ 'ई' होकर गण्ठी रूप सिद्ध हो जाता है।
गती संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप गड्डा और गडो बनते हैं। इसमें सूत्र संख्या २-३५ से संयुक्त 'त' का 'ड', २.८१ से प्राप्त '' का द्वित्व 'ई'; १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण; सिद्ध हेम ज्या० के २-४-१८ से 'आ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर 'गारूप सिद्ध हो जाता है । और पुल्लिग होने पर प्रथमा एक वचन में ३-२ स,'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्राप्त होकर 'मड्डो' रूप सिद्ध हो जाता है ।। ३५ ॥
बाहोरात् ॥ १-३६ ॥ बाहुशब्दस्य स्त्रियामाकारान्तादेशो भवति ॥ बाहाए जेण धरिओ एकाए । स्त्रियामित्येव । वामेअरो वाहू ॥
अर्थ:-बाल पास के स्त्रोलिंग रूप में अन्त्य 'उ' के स्थान पर 'आ' आदेश होता है। जैसे बाह का माहा यह रूप स्त्रीलिंग में ही होता है । और पुल्लिग में बाढ़ का बाह हो रहता है।
बाहुना संस्कृत शब्ब हैं । इसका प्राकृत रूप बाहाए होता है। इसमें सूत्र संख्या १.३६ में स्त्रीलिग का निर्धारण और अन्त्य 'ज' के स्थान पर 'आ' का आदेश; ३.२९ से तृतीया के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति होकर 'बाहाए'रूप सिद्ध होता है।
येन संस्कृत सर्वनाम है । इसका प्राकृत रूप जेग होता है। संस्कृत मूल शब्द 'यत्' है। इसमें १.११ से 'त्' का लोप; १-२४५ से 'य' का 'ज'; ३-६ से तृतीया एक वचन में 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ण'; ३-४ से प्राप्त 'ज' में स्थित 'म' का 'ए' होकर जण रूप सिद्ध हो जाता है ।
धृतः संस्कृत शम्ब है। इसका प्राकृत रूप परिओ होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३४ संकका 'अर ४-२३९ से हलन्त 'र' में 'अ' का आगम; सिद्ध हैम व्याकरण के ४-३२ से 'त' प्रत्यय के होने पर पूर्व में 'इ' का आगम; १.१० प्राप्त के पहिले रहे हुए 'या' का लोप; १-१७० से 'त्' का लोप; ३-२ सं प्रथमा के एक बच्चन में 'सि' प्रस्थय के स्थान पर 'ओ' होकर धरित्री रूप सिद्ध हो जाता है।
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एकन संस्कृत शब है । इसका प्राकृत रूप स्त्रीलिंग में एक्काए होता है । इसमें पूत्र संख्या २-१९ से 'क' का द्वित्व 'क'; सिख हेम व्याकरण के २०४-१८ से स्त्रीलिंग में अकारान्त का 'आकारान्त'; और ३-२९ से वृतीया के एक वचन में 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ए' प्रत्यय को प्राप्ति होकर एक्झाए रूप सिद्ध हो जाता है।
पामेतरः संस्कृत शाम्ब है। इसका प्राकृत रूप वामेरो होता है । इसमें सूत्र संख्या (-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२ से प्रयमा एक षचन में 'सि' प्रत्यय के मान पर 'ओ' होकर वामेअरो रूप सिद्ध हो जाता है।